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उसकी सासें गातीं हैं सरगम
अौर रात रक़्स करती है/
मैं चाँद की डफली बजाता हूँ,
मगर ये गीत जाने कौन गाता है!

हमने चाँद को चिकुटी काटी /
शरारत सूझी/
उसे प्यार आया, फिर सहलाया /
और,
दे गया चाँदनी रात भर के लिये.

उसे चाँद दे दिया
और ख़ुद चाँदनी ले ली.
ठग लिया यूँ आसमाँ को आज हमने.
सुना है,
आसमां सितारों से शिकायत करता है.

रात की मिट्टी में,
तेरी यादों की एक डाली रोपी
जज्बात से सींचा उसे,
फिर,
एक फूल खिला चाँद सा उसमें,
और,
तर हो गया मैं, तेरे बदन की गंध से.

सितारों के झूमर और दूज के चाँद का छल्ला
बू-ए-यास्मीन का आँचल,
और बदन चाँदनी से लीपा
देखो!
रात की दुल्हन दरीचे का
पल्ला हिलाती है.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by shree suneel on May 1, 2015 at 11:23pm
आदरणीय डा0 विजय शंकर सर, रचना आपको अच्छी लगी इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सर.
Comment by shree suneel on May 1, 2015 at 11:19pm
आदरणीय समर कबीर सर, उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
Comment by shree suneel on May 1, 2015 at 11:17pm
सराहना के लिए धन्यवाद, आदरणीय डा0 गोपाल नारायण सर
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 1, 2015 at 6:36pm
हमने चाँद को चिकुटी काटी /
शरारत सूझी/
उसे प्यार आया, फिर सहलाया /
और,
दे गया चाँदनी रात भर के लिये
बहुत ही सुंदर , मनमोहक, बधाई , आदरणीय श्री सुनील जी,सादर।
Comment by Samar kabeer on May 1, 2015 at 3:48pm
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें |
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 1, 2015 at 11:49am

बहुत  बढ़िया  i चाँद  का अच्छा उपयोग किया  i

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