For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ; यकायक चराग़ों को क्या हो गया है

122 122 122 122

यकायक चराग़ों को क्या हो गया है
बुझे थे, जले फिर, ये किसकी दुआ है.

चलो और दिन तो है बाकी, रूकें क्यों
शजर पे अभी नूर देखो झुका है.

इसी आरज़ू में कटी ज़िन्दगी ये
पता तो चले क्या हमारा हुआ है.

अभी छू नहीं सर्द हांथों से ऐ शब
अभी तो मुझे उसने मन से छुअा है.

मुहब्बत किसे रास आई है इसमें
अमीरी, ग़रीबी, ज़माना, जुआ है.

- श्री सुनील

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 974

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shree suneel on May 27, 2015 at 10:46am
सराहना के लिए शुक्रिया आदरणीय सौरभ सर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2015 at 1:09am

बहुत खूब आदरणीय..

Comment by shree suneel on May 17, 2015 at 6:23pm
उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सुशील सरना सर. सादर
Comment by Sushil Sarna on May 17, 2015 at 2:26pm

यकायक चराग़ों को क्या हो गया है
बुझे थे, जले फिर, ये किसकी दुआ है.

वाह आदरणीय बहुत ही गहनभावों की मनभावन ग़ज़ल बन पड़ी है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by shree suneel on May 16, 2015 at 6:04pm
धन्यवाद.. आदरणीय मुकेश श्रीवास्तव जी.
Comment by shree suneel on May 16, 2015 at 6:02pm
बहुत बहुत शुक्रिया.. आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी.
Comment by shree suneel on May 16, 2015 at 6:00pm
आदरणीय वीनस केसरी सर, ग़ज़ल आपको अच्छी लगी इसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया...
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 16, 2015 at 2:53pm

ACHHEE GAZAL MITRA

Comment by Shyam Narain Verma on May 16, 2015 at 11:17am
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।
Comment by वीनस केसरी on May 16, 2015 at 1:01am

वाह वा .. बहत खूब ग़ज़ल कही है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service