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ग़ज़ल ;आसान राहों पे...

2212 2212 2212

आसान राहों पे ले आती है मुझे
उसकी दुआ है, लग हीं जाती है मुझे.

ये शोर दिन का चैन लूटे है मेरा
औ' रात की चुप्पी जगाती है मुझे.

किस किस को रोकूं कौन सुनता है मेरी
ये भीङ पागल जो बताती है मुझे.

कूचे में जो मज्कूर है उस्से अलग
दहलीज़ तो कुछ औ' सुनाती है मुझे.

पहलू में मेरे बैठी है मुँह मोङ कर
ये ज़िन्दगी यूँ आजमाती है मुझे.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by shree suneel on May 1, 2015 at 2:03am
आदरणीय वीनस केसरी सर, ग़ज़ल से आपको संतुष्ट पा कर खुशी हुई मुझे. ये इनाम सा है सर. मेरा हौसला बढ़ा.
बहुत-बहुत शुक्रिया आपका.
Comment by shree suneel on May 1, 2015 at 1:51am
आदरणीय डा0 आशुतोष सर, ग़ज़ल पे सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
Comment by shree suneel on May 1, 2015 at 1:43am
आदरणीय डा0 गोपाल नारायण सर, ग़ज़ल आपको अच्छी लगी ये जानकर प्रसन्नता हुई. धन्यवाद सर.
Comment by वीनस केसरी on May 1, 2015 at 12:37am

बहर-ए-रजज पर कम ही ग़ज़लें देखने को मिलती हैं ... ऐसी अच्छी ग़ज़ल तो और भी कम ...

ढेरो दाद

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 30, 2015 at 10:26pm

आदरणीय सुनील जी ..बेहतरीन अशआर..सभी मुझे पसंद आये इस सुंदर प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 30, 2015 at 1:11pm

आ० सुनील जी

बढ़िया गजल कही आपने . सादर .

Comment by shree suneel on April 29, 2015 at 9:03pm
आदरणीय समर कबीर सर, ग़ज़ल आपको पसंद आई इसके लिए शुक्रिया.
Comment by Samar kabeer on April 29, 2015 at 6:27pm
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by shree suneel on April 29, 2015 at 7:35am
आदरणीय मिथलेश वामनकर सर, ग़ज़ल की सराहना के लिए पुनः धन्यवाद.
Comment by shree suneel on April 29, 2015 at 7:32am
आदरणीय गणेश जी, ग़ज़ल आपको अच्छी लगी... सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.

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