For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पापा तुम बहुत याद आते हो ...

पापा तुम बहुत याद आते हो ..

समय की बेलगाम रफ़्तार ने 
पापा आपकी छत्रछाया से 
साँसों के प्रवाह से 
आपको मुक्त कर दिया 
दुनिया कहती हैं कि ईश्वर है कहाँ ?
शायद दुनिया पागल हैं 
पर पापा आप ही तो ईश्वर का रूप हो 
मुझसे पूछे ये दुनिया, जब पिता नहीं होते 
तो ईश्वर के नाम से जाने जाते है 
आपके जाने के बाद 
तमाम कोशिशों के बावजूद 
सामने की दीवार पे 
आपकी तस्वीर नहीं लगा पाई 
आपने तो देखा था पापा 
फोटो-फ्रेम से बाहर निकल के 
चुपचाप खड़े जो हो गये थे मेरे साथ 
सूनी सपाट दीवार पे 
एक कील भी न लगा पाई थी मैं 
हाथ तो चल रहे थे 
दिमाग भी साथ दे रहा था 
पर ये व्याकुल, व्यथित मन 
ये तो उतारू था विद्रोह पे 
बार-बार व्यथित, व्याकुल मन 
विद्रोह करता ईश्वर से कि 
क्यों दूर कर दिया आपको मुझसे 
मेरे वजूद में शामिल था आपका अंश 
इतना आसान नहीं आपसे अलग होना 
मैं भी समझ नहीं पाई 
कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट 
को कैद कर दूं इस फ्रेम की चारदिवारी में 
आपसे बेहतर मेरे मन का द्वन्द
कौन समझ सकता है पापा .......
आपके जाने के साथ 
मेरा बचपना भी अनायास 
साथ छोड़ गया, माँ के 
अकेलेपन के पायदान 
अब मुझे साफ़ नज़र आते हैं.......
मुझे याद नहीं कि आपके होते 
कभी ईश्वर से हमने कुछ माँगा 
ऐसा भी नहीं की ईश्वर में विश्वाश नहीं 
आपके साए का विस्तार इतना ज्यादा था 
कि उसके बाहर जाने के लिए सोचा ही नहीं
मेरे प्रिय पापा तुम बहुत याद आते हो ......

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक
इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़

 

 

 

Views: 1799

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on May 1, 2015 at 3:46pm
मोहतरमा सुनीता दोहरे जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2015 at 11:57am

आदरणीया सुनीता दोहरेजी, आपकी यह भावना प्रधान कविता प्रभावित करती है. इसके लिए आपको हार्दिक बधाई.
 
प्रस्तुत कविता में भावनाओं का उन्मुक्तप्रवाह है. लेकिन कहते हैं न, भावनाओं को इंगितों या पद्य-वाक्यों में शाब्दिक करने की कला कविताई है. इस स्तर से इस रचना को तनिक कसना था. आपका थोड़ा प्रयास चाहिये होता था.
विश्वास है, आप मेरे कहे को समझ रही होंगीं.
शुभेच्छाएँ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 1, 2015 at 11:56am

आ0 सुनीता जी

आपने मन भावुक कर  दिया  i मुझे खुशी है आपने पिता का महत्व बहुत अच्छे से समझा और व्यक्त किया .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 1, 2015 at 11:07am

बहुत मार्मिक रचना, आदरणीया सुनीता जी. बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service