For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: नूर: गोया सस्ती शराब हो बैठे.

२१२२/१२१२/२२ (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)

तुम तो सचमुच सराब हो बैठे.
यानी आँखों का ख़्वाब हो बैठे
.
साथ सच का दिया गुनाह किया   
ख्वाहमखाह हम ख़राब हो बैठे.   
.
फ़िक्र को चाटने लगी दीमक
हम पुरानी क़िताब हो बैठे.
.
उनकी नज़रों में थे गुहर की तरह  
गिर गए!!! हम भी आब हो बैठे.
.
अब हवाओं का कोई खौफ़ नहीं
कुछ चिराग़ आफ़्ताब हो बैठे.
.
ऐरे ग़ैरों के मुँह लगे तो लगा     
गोया सस्ती शराब हो बैठे.
.
तब फ़रिश्तों की घट गयी कीमत
जब से वो दस्तियाब हो बैठे.
.
निलेश 'नूर'

मौलिक / अप्रकाशित  

Views: 726

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 11:28am

शुक्रिया आ. धर्मेन्द्र जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:35am

बहुत ख़ूब आ. नूर साहब। ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं। दाद कुबूल कीजिए

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 22, 2015 at 8:39am

शुक्रिया नीरज "नीर" जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 22, 2015 at 8:39am

शुक्रिया आ. मिथिलेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 22, 2015 at 8:39am

शुक्रिया आ. महिमा श्री जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 22, 2015 at 8:39am

शुक्रिया आ. मुकेश जी 

Comment by Neeraj Neer on April 21, 2015 at 10:28pm

वाह वाह ... 

.
अब हवाओं का कोई खौफ़ नहीं 
कुछ चिराग़ आफ़्ताब हो बैठे. 
.सब एक से बढ़ एक शेर.... हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 21, 2015 at 9:59pm
वाह वाह वाह आदरणीय नीलेश जी आपकी ग़ज़ल ने मुग्ध कर दिया। शेर दर शेर दाद ही दाद। झूम गया हूँ इस कलाम पे।
Comment by MAHIMA SHREE on April 21, 2015 at 8:49pm

साथ सच का दिया गुनाह किया   
ख्वाहमखाह हम ख़राब हो बैठे.   
.
फ़िक्र को चाटने लगी दीमक 
हम पुरानी क़िताब हो बैठे..........लाजबाव...

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on April 21, 2015 at 12:33pm

 वाह - सुन्दर ग़ज़ल - बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service