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१२२२/ १२२२ / १२२ 

न जानें क्या से क्या जोड़ा करेंगे
तुम्हारे ग़म में दिल थोडा करेंगे.
.
तुम्हारे साथ हम पीते रहे हैं  
तुम्हारी नाम की छोड़ा करेंगे.
.
तुम्हारी आँख का हर एक आँसू
हम अपनी आँख में मोड़ा करेंगे.
.
घरौंदे रेत के क्यूँ ग़ैर तोड़े
बनाएंगे, हमीं तोडा करेंगे.  
.
नपेंगे आज सारे चाँद तारे
हम अपनी फ़िक्र को घोडा करेंगे.
.
ख़ुदा को हिचकियाँ लगने लगेंगी
उसे आहों से झिंझोड़ा करेंगे.   
.
निलेश 'नूर' 
मौलिक / अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2015 at 6:14pm

शुक्रिया आ. गणेश जी.
 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 18, 2015 at 6:09pm

आदरणीय निलेश भाई, अपेक्षाकृत एक कठिन काफिया को बड़ी मुस्तैदी से निभाया है, अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है बहुत बहुत बधाई.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2015 at 4:18pm

शुक्रिया आ. डॉ साहब.
दिल थोडा करना भी छोटा करना ही है.
गुलज़ार साहब कुछ यूँ फ़रमाते हैं
.
शहद जीने का मिला करता है थोडा थोडा
जाने वालों के लिए दिल नहीं थोडा करते.
हाथ छूटें तो भी रिश्ते नहीं तोडा करते
सादर 

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 18, 2015 at 4:00pm

अ० नूर जी

बहुत खूब . एक चीज मुझे खटकती है  . हो सकता है मैं गलत हूँ . दिल छोटा  करना तो मुहावरा है पर दिल थोडा करना  यह अब तक नहीं पढ़ा . सादर .

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