For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी पलकें नम हुईं ज्यों आपको क्या हो गया

२१२२  २१२२  २१२२  २१२ 

 

मेरी पलकें नम हुईं ज्यों आपको क्या हो गया 

मेरा तो हर ख्वाब टूटा क्या तुम्हारा खो गया 

 

शख्स  जो कहता था मुझसे राह अब उसकी जुदा है 

देख कर मुझको नशे में, बालकों सा रो गया 

 

सर्द रातों में बचाने के लिए वो अपनी जान 

ख़त मेरे सीने लगाये आज फिर से सो गया

 

जुगनुओं की ही तरह जलता रहा जो रात भर 

वो सहर होते न जाने किस तरह गुम हो गया

 

मुद्दतों के बाद जब मुझसे मिला वो राह में 

अश्कों से वो मेरा दामन देखिये फिर धो गया 

 

गुल से ओंठों पर बिखेरे आज चंचल सी हँसी

एक क़ातिल हुस्न मेरे दिल में उल्फत बो गया

 

सांस साँसों से मिलाकर,  डाल आँखें आँखों में

प्रेम की माला  में कोई पहला मोती पो गया 

 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 498

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on April 11, 2015 at 3:18pm

बहुत खूब .... शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

सादर.....

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 11, 2015 at 1:13pm

आदरणीय समर कबीर जी ..आपके स्नेहिल उत्साहवर्धक शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद ..आदरनीय गिरिराज भाईसाब के बेशकीमती मशविरे पर अमल करते हुए संसोधन कर लिया है  सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 11, 2015 at 1:11pm

आदरणीय विजय सर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 11, 2015 at 1:11pm

आदरणीय राम अवध जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया और आपके मशविरे के लिए हार्दिक धन्यवाद शीघ्र ही संसोधन करूंगा / 

Comment by Samar kabeer on April 11, 2015 at 11:09am
जनाब डा.आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,अच्छी और सुन्दर ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
मैं जनाब गिरिराज भंडारी जी की बात से सहमत हूँ |
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 10, 2015 at 9:52pm
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , सुन्दर एवं सराहनीय , बधाई , सादर।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on April 10, 2015 at 9:51pm

आदरणीय मिश्रा जी मेरे ज्ञान के अनुसार
आपके गजल की बहर है फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
परन्तु दूसरे शेर का पहला मिश्रा बहर से खारिज हो रहा है उसमें अन्त का है शब्द अधिक है और बहर हो गई है
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन
अतः अगर गलत लगे तो सुधरना हो सकता है आप सही हों परनतु मेरे अल्प ज्ञान से गलत है।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 10, 2015 at 3:29pm

आदरणीय गिरिराज भाई साब ..आपकी इस नेक सलाह के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद . मैं आपकी बातों से सहमत हूँ और आपके द्वारा दिए गए सुझाव समीचीन हैं ..हिंदी उर्दू शब्द का इजाफत के उद्देश्य से उपयोग मुझे भी गलत लग रहा था भविष्य में इस पहलू पर भी नजर रखूंगा आपके मशविरे मुझे बेहद अच्छे लगे आपके मशविरे पर अमल करते हुए यथानुसार संशोधन कर रहा हूँ ..पुनः हार्दिक धन्यवाद के साथ और भविष्य में भी आपके ऐसे ही मशविरों की उम्मीद के साथ सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 10, 2015 at 1:02pm

आदरनीय आशुतोष भाई  बहुत खूब सूरत गज़ल हुई है  दिली मुबारकबादें कुबूल करें ॥

कुछ एक  मिसरों मे कुछ सलाह देना चाहता हूँ , सही लगे तो स्वीकार कीजियेगा  ---

1.- देख कर मुझको नशे में बालकों सा रो गया   --  कामा कहीं लगे तो किसको  नशे मे कहना चाहते हैं ये बात साफ हो जायेगी  , जैसे -

     देख कर मुझको,  नशे में बालकों सा रो गया  -   या - देख कर मुझको नशे में,  बालकों सा रो गया

2.-

मुद्दतों के बाद जब मुझसे मिला वो राह में 

मेरा दामन आँख के अश्कों से अपने धो गया   --  आँसू  आँ ख के ही होते हैं , अतः  ऐसा कह के देखिये  --

अश्कों से वो मेरा दामन आज फिर से धो गया 
 

3-

गुल से ओंठों पर बिखेरे आज चंचल सी हँसी

एक कातिल हुस्न दिल में बीजे उल्फत बो गया    --- बीज हिन्दी शब्द है और उल्फत उर्दू  , ऐसे में इज़ाफत का उपयोग सही नही माना जाता  -- लगे त्प आप ऐसा कह सकते हैं  --- एक क़ातिल हुस्न मेरे दिल में उल्फत बो गया

सांस साँसों से मिलकर डाल आँखें आँखों में

प्रेम की इस माल का पहला वो मोती पो  गया     --   प्रेम की धागा में कोई पहला मोती पो गया 

आदरणीय ऊपर की सलाह सही न लगे तो आप कुछ और कह लीजियेगा ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service