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ग़ज़ल : एक वो थी एक मैं था एक दुनिया जादुई

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२

रूह को सब चाहते हैं जिस्म दफ़नाने के बाद
दास्तान-ए-इश्क़ बिकती खूब दीवाने के बाद

शर्बत-ए-आतिश पिला दे कोई जल जाने के बाद
यूँ कयामत ढा रहे वो गर्मियाँ आने के बाद

कुछ दिनों से है बड़ा नाराज़ मेरा हमसफ़र

अब कोई गुलशन यकीनन होगा वीराने के बाद


जब वो जूड़ा खोलते हैं वक्त जाता है ठहर
फिर से चलता जुल्फ़ के साये में सुस्ताने के बाद

एक वो थी एक मैं था एक दुनिया जादुई
और क्या कहने को रहता है इस अफ़साने के बाद
----
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 19, 2015 at 10:24am

शुक्रिया आ. somesh kumar जी

Comment by Nirmal Nadeem on March 19, 2015 at 10:16am

achchi ghazal hui hai bhai...

kya kahne waaah waaah waaaah

Comment by vandana on March 19, 2015 at 4:57am

कुछ दिनों से है बड़ा नाराज़ मेरा हमसफ़र

अब कोई गुलशन यकीनन होगा वीराने के बाद


जब वो जूड़ा खोलते हैं वक्त जाता है ठहर
फिर से चलता जुल्फ़ के साये में सुस्ताने के बाद

वाह आदरणीय बहुत खूबसूरत ग़ज़ल 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 18, 2015 at 9:31pm

कुछ दिनों से है बड़ा नाराज़ मेरा हमसफ़र

अब कोई गुलशन यकीनन होगा वीराने के बाद--वाह्ह्ह्हह क्या कहने 

बहुत प्यारी ग़ज़ल हुई है आ० धर्मेन्द्र जी ,दिली बधाईयाँ 

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on March 18, 2015 at 9:27pm

वाह धर्मेन्द्र जी क्या खूब ग़ज़ल कही हे ....बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by umesh katara on March 18, 2015 at 9:24pm

जब वो जूड़ा खोलते हैं वक्त जाता है ठहर
फिर से चलता जुल्फ़ के साये में सुस्ताने के बाद
वाहहहहह

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 8:49pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी,

रूह को सब चाहते हैं जिस्म दफ़नाने के बाद
दास्तान-ए-इश्क़ बिकती खूब दीवाने के बाद....बहुत सुन्दर , हार्दिक बधाई ! 

Comment by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 8:41pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी ,

सुन्दर गजल  के लिए दिल से बधाई.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 18, 2015 at 8:19pm

जब वो जूड़ा खोलते हैं वक्त जाता है ठहर
फिर से चलता जुल्फ़ के साये में सुस्ताने के बाद

एक वो थी एक मैं था एक दुनिया जादुई
और क्या कहने को रहता है इस अफ़साने के बाद--------- सुभानाल्लाह --- क्या गजल कही है . आदरणीय धर्मेन्द्र जी  .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 18, 2015 at 8:08pm

सुन्दर ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय धर्मेन्द्र जी 

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