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सजा-ए-मौत लिख डाली

1222 1222 1222 1222

तेरी आँखों में डूबा था यही अपराध था मेरा
जरा सी बात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--1

ये बिखरी जुल्फ मैं तेरी ,सँवारू हाथ से अपने
मेरे जज्बात पर तूने सजा-ए- मौत लिख डाली--2

सिले हैं होठ क्यों तूने  शिकायत की बजह क्या है
मिलन की रात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--3

तेरे होठों से होठों को जलाकर देख लेता मैं
मगर हर-बात पर तूने सजा-ए-मौत लिखडाली--4

बडी मुश्किल से गुजरा था खिजाओं से भरा मौसम
मगर बरसात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--5

उमेश कटारा 
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by maharshi tripathi on March 11, 2015 at 5:54pm

बडी मुश्किल से गुजरा था खिजाओं से भरा मौसम 
मगर बरसात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--5,,,,,,,,,,,बहुत खूबसूरत गजल आ.उमेश कटारा जी |

Comment by Shyam Mathpal on March 11, 2015 at 1:38pm

Aadarniya Katara Ji,

Har bar tune maut likh dali.  Sundar rachna badhai.

Aah Aah kahte the ham,Jakhm deta raha jamana,

Ham Rote huwe chal base, Woh-- Woh kahata hain Jamana.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 11, 2015 at 12:17pm

आ 0 कटारा जी

मगर हर-बात तूने सजा-ए-मौत लिखडाली--4-------------------- मुझी लगता है इसमें ' पर'  शब्द छूट गया है  i गजल बेहतरीन है i सादर i

Comment by Hari Prakash Dubey on March 11, 2015 at 10:03am

वाह, आदरणीय उमेश जी खूबसूरत ग़ज़ल है 

बडी मुश्किल से गुजरा था खिजाओं से भरा मौसम 
मगर बरसात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली...बहुत सुन्दर बधाई आपको ! सादर 

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