For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल-मैं सीसा हूँ मुझे अफसोस क्या होगा बिखरने से

1222 1222 1222 1222
-----------------------------------------------
ठसक तेरी मेरी गैरत के आपस में उलझने से
मुहब्बत लुट गयी अपनी दिलों में जह्र पलने से
..........
दगाबाजी से अच्छा तो अलग होना मुनासिब था
बफाओं के बिना क्या है सफर में साथ चलने से
...........
मेरा घर अपने हाथों से कभी मैंने जलाया था
नहीं लगता मुझे अब डर किसी का घर भी जलने से
----------
तू पत्थर है मुझे हरबार चकनाचूर करता है 
मैं सीसा हूँ मुझे अफसोस क्या होगा बिखरने से
-----------
रहा ता- उम्र मैं हर्फे-गलत बेज़ार सा यारो
सुकूँ मिलने लगा है अब मुझे तनहाई मिलने से
...........
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

 

Views: 657

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on February 14, 2015 at 10:18am

शुक्रिया Hari Prakash Dubey ji

Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:26am

आदरणीय उमेश कटारा जी////तू पत्थर है मुझे हरबार चकनाचूर करता है
मैं सीसा हूँ मुझे अफसोस क्या होगा बिखरने से॥   वाह .../// बहुत शानदार रचना , बधाई, सादर।

Comment by umesh katara on February 13, 2015 at 7:17pm

शुक्रिया Dr Ashutosh Mishra जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2015 at 5:12pm

आदरणीय उमेश जी इस उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्डक बधाई सादर 

Comment by umesh katara on February 13, 2015 at 9:46am

गजल को पसन्द किया आपका तहेदिल से आभार Samar kabeer जी

Comment by Samar kabeer on February 12, 2015 at 10:59pm
जनाब उमेश कटारा जी,आदाब,अच्छी और सुन्दर ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं|
Comment by umesh katara on February 12, 2015 at 9:27pm

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 9:26pm
उम्दा ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
Comment by umesh katara on February 12, 2015 at 7:12pm

गजल को पसन्द किया आपका तहेदिल से आभार डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव ji

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 6:43pm

तू पत्थर है मुझे हरबार चकनाचूर करता है 
मैं सीसा हूँ मुझे अफसोस क्या होगा बिखरने से------- क्या बात है  i अति सुन्दर i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
5 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service