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अतुकांत कविता

क्या तुम्हें मालूम है
मुझे हरवक्त तुम्हें ,मेरे साथ होने का
अहसास रहता है
कि कहीं दूर से ही तुम मुझे कोई सहारा दे रही हो
मगर अबकी बार तुमसे मिलकर
मेरा वह अहसासों भरा विश्वास टूटता नजर आया
क्या तुम खुदको मुझसे दूर ले जाना चाहती हो
या दूर ले जा चुकी हो
बहुत दूर
मुझे तुम्हारी हर राहे मुकाम पर
जरूरत होगी
उस वक्त एक सूनापन
मेरे चेतन को अवचेतन करेगा
मेरे सोचने की शक्ति क्षीण हो जायेगी
मेरा शरीर सुन्न होने लगेगा
मेरी धमनियों में धीरे धीरे दौड रही
रक्त की बूँदें
बहुत धीमें स्वरों में तुम्हें पुकारेंगी
क्या तुम सुन पाओगी
उस वक्त का मेरा बिरह-विलाप
नहीं शायद ये सम्भव न होगा
उस आखिरी मुकाम पर पहुँचकर
मेरी पहाडों जैसी बंजड़ आँखें
समन्दर जैसी बेचैन हो उठेंगी
और मेरे चारों तरफ इकट्ठी भीड में
तुम्हें खोज रही होंगी
क्या तुम आ पाओगी
नहीं शायद ये सम्भव न होगा
मेरी खुली हुयी प्यासी पलकों को
अपनी नर्म-नाजुक हथेलियों से
हमेशा हमेशा के लिये
बन्द करने ।।

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by umesh katara on February 18, 2015 at 6:06pm

जितेन्द्र पस्टारिया जी

शुक्रिया साहब

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 16, 2015 at 12:04pm

अंतर्भावों को सुंदर शब्द मिले. बधाई आदरणीय उमेश जी

Comment by umesh katara on February 15, 2015 at 3:59pm

Er. Ganesh Jee "Bagi" जी शुक्रिया


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 15, 2015 at 3:30pm

अच्छी अतुकांत रचना आप प्रस्तुत किये हैं आदरणीय उमेश कटारा जी, बधाई स्वीकार करें. साथियों की रचनाएँ आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ललायित हैं.

Comment by umesh katara on February 15, 2015 at 7:43am
Comment by umesh katara on February 15, 2015 at 7:43am

मिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 15, 2015 at 3:13am

आदरणीय उमेश कटारा जी भावपूर्ण बेहतरीन कविता के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 14, 2015 at 8:50pm

कटारा जी

बहुत बढ़िया i भावपूर्ण कविता i

Comment by umesh katara on February 14, 2015 at 8:41pm

Hari Prakash Dubey जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on February 14, 2015 at 8:41pm

maharshi tripathi जी शुक्रिया

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