For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऋतु बसंत का आगमन,शीतल बहे सुगंध,

खलिहानों से आ रही, पीली  पीली  गंध |

 

जाडा जाते कह रहा, आते देख बसंत,

मधुर तान यूँ दे रही, बनकर कोयल संत |

 

वन उपवन सुरभित हुए, वृक्ष धरे श्रृंगार

माँ वसुधा का मनिएँ, बहुत बड़ा आभार |

 

कलरव करते मौर अब, देखें उठकर भोर,

अद्भुत कुदरत की छटा, करती ह्रदय विभोर |

 

फूलों पर मंडरा रहे, भँवरे गुन गुन गान

मतवाला मौसम सुने, कुहू कुहू की तान |

 

पुष्प जड़ी चुनरियाँ सी, वसुधा ने ली ओढ़

नयें वस्त्र में डालियाँ, दिख जाती हर मोड़ |

 

गुनगुन करते गा रहे,भँवरों का अब दाँव,

पीत रंग में सज रहे,  साजन से हर गाँव |

 

कलियों की मुस्कान से, खिला प्यार का रंग,

मन मयूर अब नाचता, भर कर खूब उमंग |

 

काम काज सब छोड़कर, लौटा उलटे पाँव

बासंती मौसम हुआ,  देख हमारे गाँव |

 

गोद भराई हो रही, कर न सके सब चूक,

महक उठें उपवन सभी, कुहू कुहू की कूक |

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1135

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 7, 2015 at 9:57am

बसंत ऋतू पर रचित दोहों का अवलोकन कर उत्साहवर्धन  करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2015 at 11:05am

दोहे पसंद कर सराहने के लिए आपका हार्दिक  आभार श्री हरी प्रकाश दुबे जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2015 at 10:43am

सुप्रभात | बसंत के मौसम पर रचे दोहों पर सुंदर टिपण्णी कर प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार भाई श्री खुर्शीद खैराडी जी | 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2015 at 10:41am

दोहे सराहने के लिए आपका अतिशय आभार श्री अजय शर्मा जी और श्री लक्ष्मण धामी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2015 at 10:38am

दोहें सराहने के लिए आपका अतिशय आभार श्री मिथिलेश वामनकर जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2015 at 10:36am

दोहे अच्छे बन पड़े यह जानकर संतोष हुआ  आपका हार्दिक आभार श्री विजय शंकर जी और श्री समर कबीर जी | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2015 at 8:26pm

वन उपवन सुरभित हुए, वृक्ष धरे श्रृंगार  

माँ वसुधा का मनिएँ, बहुत बड़ा आभार |--अतिसुन्दर 

हार्दिक बधाई आदरणीय 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 5, 2015 at 3:01pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी ,बहुत सुन्दर रचना...

गोद भराई हो रही, कर न सके सब चूक,

महक उठें उपवन सभी, कुहू कुहू की कूक |...क्या बात है ! बधाई ,सादर !

Comment by khursheed khairadi on February 5, 2015 at 1:13pm

आदरणीय ,लडीवाला जी ,बहुत सुन्दर दोहावली है |

फूलों पर मंडरा रहे, भँवरे गुन गुन गान

मतवाला मौसम सुने, कुहू कुहू की तान |

 

पुष्प जड़ी चुनरियाँ सी, वसुधा ने ली ओढ़

नयें वस्त्र में डालियाँ, दिख जाती हर मोड़ |

 आपने मौसम के मज़े को दुगुना कर दिया |सादर अभिनन्दन |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2015 at 12:52pm

आ0  भाई  लडीवाला जी, सभी दोहे बहुत अच्छे हैं , बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service