For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँझी ( एक कुण्डलिया छंद) ... डॉ० प्राची सिंह

माँझी मंजिल से पृथक डालो नहीं पड़ाव

भँवर भरे मझधार में क्यों उलझाते नाव?

क्यों उलझाते नाव, लहर पथ कहाँ उकेरे

उथल-पुथल संघर्ष, लाख चौरासी फेरे ,

एकल करो विमर्श! बात करनी क्या साँझी?

क्या होगा परिणाम, राह भटके जो माँझी?

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 697

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 19, 2015 at 7:21pm

आदरणीया प्राचीजी इस शानदार रचना पर आपको हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 7:06pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी , सोच रहां हूँ इतने कम शब्दों में इतनी  सुन्दर प्रस्तुति कैसे लिखी जा सकती है ? बहुत ही सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 19, 2015 at 6:54pm

बहुत सुंदर और भावपूर्ण कुण्डलिया छंद | जीवन रूपी नैयाँ न भटके, सार रूप में बहुत कुछ समाता छंद रचा है | हार्दिक बधाई आपको 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 19, 2015 at 2:36pm

आ० प्राची जी

चौरासी लाख फेरे से आध्यात्मिक  संकेत देकर आपने न मांझी  मे ईश्वर के दर्शन कराये i उसके विचलन को हम अध्यात्म में ही जीवन की परीक्षा कहते हैं i वह अधिक परीक्षा न ले यानि अधिक न भटके  यह जीव की सहज प्रार्थना है i बहुत अच्छे शब्दों से आपने छंद सिद्ध किया है i आपको बधाई i  सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 19, 2015 at 4:26am
" क्या होगा परिणाम, राह भटके जो माँझी?"
आदरणीय डॉ o प्राची सिंह जी, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,
बहुत बहुत बधाई, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2015 at 12:30am

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी इस रचना को पढ़ते हुए कामायनी याद आ गई ..यथा 

शक्ति के विद्युत् कण जो व्यस्त,विकल बिखरे है हो निरुपाय 

समन्वय उनका करे समस्त, विजयनी मानवता हो जाय.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 19, 2015 at 12:01am

आ० मिथिलेश जी 

छंद का कथ्य आप सम पाठक की स्वीकार्यता पा सका और अभिव्यक्ति को आपकी आत्मीय सराहना मिली.. इससे मुझे भी संतोष हुआ है कि रचना सार्थक हो सकी  है 

आपका हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2015 at 11:03pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी बहुत सुन्दर कुण्डलिया छंद हुआ है. एक एक शब्द जड़ा हुआ. कथ्य इतनी सहजता से उभर आया कि बस हृदय से वाह वाह स्वमेव ही निकलने लगे. हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

माँझी मंजिल से पृथक,  डालो नहीं पड़ाव

भँवर भरे मझधार में,  क्यों उलझाते नाव?

क्यों उलझाते नाव, लहर पथ कहाँ उकेरे

उथल-पुथल संघर्ष, लाख चौरासी फेरे ,

एकल करो विमर्श! बात करनी क्या साँझी?

क्या होगा परिणाम, राह भटके जो माँझी?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service