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ग़ज़ल- कोई सूरत तो हो कि तुझपे ऐ’तबार आये

2122- 1212- 1212- 22 /112

कोई सूरत तो हो कि तुझपे ऐ’तबार आये

क्या पता दिलफ़रेब बन के ग़मग़ुसार आये

 

मैं तुझे भूलने की कोशिशों में हूँ बेचैन

पर मुझे तेरा ही खयाल बार-बार आये

 

ज़ीस्त गुज़री ख़मोशियों के दरमियान मगर

ये हुआ वक़्ते मर्ग लोग बेशुमार आये

 

दिल नज़ारा ए रंगो गुल को कब से तरसे है

ऐ खुशी काश तू मिसाले नौबहार आये

 

कौन सा दह्र है ये कौन सी जगह है जहाँ

दूर तक बस नज़र गुबार ही गुबार आये

 

(दिलफ़रेब- धोखा देने वाला, ग़मग़ुसार- हमदर्द, वक़्ते मर्ग- मौत के समय

मिसाले नौबहार- बहार की तरह, दह्र- काल)

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 18, 2015 at 10:10am

आदरणीय हरिप्रकाश दूबे जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 18, 2015 at 10:09am

जनाब खुर्शीद खैराड़ी साहब आपका तहेदिल से शुक्रिया। वैसे जिन अशआर की बात कर रहे हैं उनमें से एक को मैंने कुछ यूँ लिखा था
"आँधियों की है रौ कि कोई काफिला गुज़रा
दूर तक बस नज़र गुबार ही गुबार आये"  

बाद में बदल दिया :-))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 18, 2015 at 10:03am

आदरणीय गिरिराज सर रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 18, 2015 at 10:02am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 18, 2015 at 10:02am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 18, 2015 at 10:01am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा सर आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 18, 2015 at 10:00am

आदरणीय मिथिलेश जी रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on January 17, 2015 at 11:27am

achhee rachnaa mitra

Comment by विजय मिश्र on January 16, 2015 at 10:27am
बेहद लजीज और खास्ता गजल , दिल में ऐसे उतरता है जैसे हलक से पानी |शुक्रिया शिज्जू भाई इस नायब केलिए |
Comment by भुवन निस्तेज on January 16, 2015 at 9:35am
इस नायाब ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय.....

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