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कई रोज से खाली पेट थी
संभाल न सकी भूख
पसीज कर
दया करूणा ने
दो रोटी दस रूपये में
इतना भरा उसका पेट
फिर नौ माह
फूला रहा 


वो कुत्ता बिल्ली नहीं थी
बिना किसी एवज
भूख मिटा दी जाती
विक्षिप्त थी तो क्या
थी तो स्त्री न 

*******************************

आशा पाण्डेय ओझा 

मौलिक अप्रकाशित 

Views: 860

Comment

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Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 4:12pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी

Comment by somesh kumar on January 14, 2015 at 3:28pm

विक्षिप्त स्त्री नहीं वो रोटी देने वाला था |और समाज  ऐसे विक्षिप्तों से भरी हुई है |सुंदर मर्म-स्पर्शी रचना |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 14, 2015 at 1:02pm

आदरणीया आशा जी , सुन्दर मार्मिक कविता रचना के लिये बधाई ।

Comment by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 1:01pm

सुन्दर, मर्मस्पर्शी  रचना . हार्दिक बधाई आदरणीया आशा पाण्डेय ओझा जी ! सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 12:38pm

आदरणीया आशा जी मार्मिक रचना है |बधाई |सादर 

Comment by aman kumar on January 14, 2015 at 12:06pm

थी तो स्त्री न ,

स्त्री होना ही अपने आप में , विवशता तो नही ,

पर कुछ तो है 

आपकी सोच दिल तक गयी , आभार 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:39am

इस मार्मिक और अमूल्य रचना के लिए बहुत बहुत बधाई ..... आ० प्रतिभा बहन l

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2015 at 11:37am

वो कुत्ता बिल्ली नहीं थी
बिना किसी एवज
भूख मिटा दी जाती
विक्षिप्त थी तो क्या
थी तो स्त्री न -------------------------मार्मिक i हृदयस्पर्शी i

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2015 at 11:03am

बधाई , इस कीमती रचना के लिए , सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 10:59am
आदरणीया आशा जी कथ्य के मर्म को बहुत कम शब्दों में प्रभावशील ढंग से उकेरा है। रचना दिलो दिमाग पर सीधा असर करती है। इस सफल रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें।

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