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मुझे मार कर क़्यों ज़लाया नहीं है

तेरा कुछ भी मुझ पर बक़ाया नहीं है
मुझे मार कर क़्यों ज़लाया नहीं है
..
सज़ा बे-बज़ह ही मिली है क़सम से
क़िसी को भी मैंने सताया नहीं है
..
गया तू नज़र से,मेरी ज़ान लेक़र 
मग़र जहर क्यों कर पिलाया नहीं है
..
मोहब्बत में कर दूँ ज़रा भी मिलावट
व़फा ने ये मुझको सिख़ाया नहीं है
..
मुझे कह रही हैं मुसलसल ये हिचकी
अभी तक भी तूने भुलाया नहीं है

मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा

Views: 640

Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2015 at 9:12pm

आदरणीय उमेश भाई पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Hari Prakash Dubey on January 12, 2015 at 5:12pm

तेरा कुछ भी मुझ पर बक़ाया नहीं है

मुझे मार कर क़्यों ज़लाया नहीं है...... आदरणीय उमेश कटारा जी सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई आपको !

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 3:48pm

मुझे कह रही हैं मुसलसल ये हिचकी
अभी तक भी तूने भुलाया नहीं है-------------------- vaah ----- vaah ------ vaah ,

Comment by Madan Mohan saxena on January 12, 2015 at 3:14pm

बेहद उम्दा ग़ज़ल
मुझे कह रही हैं मुसलसल ये हिचकी
अभी तक भी तूने भुलाया नहीं है

Comment by somesh kumar on January 12, 2015 at 9:53am

नजरों से जान लेना 

मिलावट ना होना 

हिचकी का आना 

बस दिल को तरंगित कर दिया आप ने 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 8:46am

मुझे कह रही हैं मुसलसल ये हिचकी
अभी तक भी तूने भुलाया नहीं है

आदरणीय उमेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई ... बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 11, 2015 at 10:54pm

वाह अच्छी ग़ज़ल कही है वाह

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