For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस तुम्ही पे आस है ( कविता)

उठ सम्भल ओ नौजवान

यही है तेरे नाम पैगाम

लिंग जाती धर्म भेद

आग में जलाए चल

एक थे हम एक हैं

अलख तू लगाए चल

दम तेरे पास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

बाधा कोई रोक ले

चूलें तू उसकी ठोक दे

हर दीबार को गिराए चल

हक पाने के लिए

जन जन को जगाए चल

बस तुम्हीं में श्वास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

पुण्य आज डूब रहा

पाप फल फूल रहा

सत्ता भ्रष्ट हो रही

जनता त्रस्त रो रही

सोये हैं जो कब्र में

हर लाश तू हिलाए चल

तुम्हीं में बिश्वास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

बंधें कभी न अरमान

तेरे सामने है आसमान

दिशा तूफान की मोड़ दे

हर मंजिल पीछे छोड़ दे

देश कौम  के लिए

नया कुछ कमाए चल

कुर्बान हो तो देश पर

साक्षी इतिहास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

समाज के शोध में

कुनीति के निरोध में

निरंकुशता, भ्रष्टाचार और

कुशासन के बिरोध में

सर कभी न झुके

आबाज कभी न रुके

चिंगारी इक लगाए चल

ज्ञानालोक तू फैलाए चल

मशाल तेरे हाथ है

कुछ तुम्हीं में खास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

अपने हुनर और ज्ञान का

धरा से आकाश तक

माँ भारती की शान का

झंडा फहराए चल

पूर्व से ही विश्व में

फैलता  प्रकाश है

बस तुम्हीं पे आस है

बस तुम्हीं पे आस है

 

(मौलिक एवम् अप्रकाशित )

कंवर करतार ‘खन्देह्ड़बी’

Views: 733

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कंवर करतार on January 6, 2015 at 1:22pm

भाई सोमेश ,निस्छ्न्द आधुनिक कविता इसे समझता हूँ Iठीक फरमाया, वास्तब में अतुकान्त नहीं,टिपणी के लिए धन्यबाद I 

Comment by कंवर करतार on January 6, 2015 at 1:14pm

भाई वामनकर ,कविता सराहना के लिए आभार I

Comment by कंवर करतार on January 6, 2015 at 1:11pm

त्रिपाठी जी ,उत्साह बर्धन के लिए धन्यबाद I

Comment by somesh kumar on January 6, 2015 at 10:56am

भाई जी ये कविता ,अतुकांत तो नहीं है ,कविता  में युवाओं को जागृत करने के लिए  जो आह्वान आप ने किया है ,आशा है उस भाव को ये कविता पोषित कर सकें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 5, 2015 at 8:50pm

सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

सुन्दर पंक्तियाँ -

सर कभी न झुके

आबाज कभी न रुके

चिंगारी इक लगाए चल

ज्ञानालोक तू फैलाए चल

मशाल तेरे हाथ है

कुछ तुम्हीं में खास है

बस तुम्हीं पे आस है

Comment by maharshi tripathi on January 5, 2015 at 8:45pm

एक सामान लय वाली ,अदभुत कविता |

आपको बधाई आदरणीय |

Comment by कंवर करतार on January 5, 2015 at 8:34pm

डॉ.श्रीवास्तव जी,आप जैसे विद्वान को कविता अच्छि लगी है ,सौभाग्यI धन्यबाद I

Comment by कंवर करतार on January 5, 2015 at 8:30pm

भाई दुबे जी,कविता की सराहना के लिए आभार I

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 5, 2015 at 7:46pm

सर कभी न झुके

आबाज कभी न रुके

चिंगारी इक लगाए चल

ज्ञानालोक तू फैलाए चल

मशाल तेरे हाथ है

कुछ तुम्हीं में खास है

बस तुम्हीं पे आस है-------------------------- sundar bhav I

 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 5, 2015 at 6:25pm

खूबसूरत/जोशवर्धक कविता , हार्दिक बधाई, आदरणीय  डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी' जी !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"लोक के नाम का  शासन  ये मैं कैसा देखूँ जन के सेवक में बसा आज भी राजा देखूँ।१। *…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service