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बस तुम्ही पे आस है ( कविता)

उठ सम्भल ओ नौजवान

यही है तेरे नाम पैगाम

लिंग जाती धर्म भेद

आग में जलाए चल

एक थे हम एक हैं

अलख तू लगाए चल

दम तेरे पास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

बाधा कोई रोक ले

चूलें तू उसकी ठोक दे

हर दीबार को गिराए चल

हक पाने के लिए

जन जन को जगाए चल

बस तुम्हीं में श्वास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

पुण्य आज डूब रहा

पाप फल फूल रहा

सत्ता भ्रष्ट हो रही

जनता त्रस्त रो रही

सोये हैं जो कब्र में

हर लाश तू हिलाए चल

तुम्हीं में बिश्वास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

बंधें कभी न अरमान

तेरे सामने है आसमान

दिशा तूफान की मोड़ दे

हर मंजिल पीछे छोड़ दे

देश कौम  के लिए

नया कुछ कमाए चल

कुर्बान हो तो देश पर

साक्षी इतिहास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

समाज के शोध में

कुनीति के निरोध में

निरंकुशता, भ्रष्टाचार और

कुशासन के बिरोध में

सर कभी न झुके

आबाज कभी न रुके

चिंगारी इक लगाए चल

ज्ञानालोक तू फैलाए चल

मशाल तेरे हाथ है

कुछ तुम्हीं में खास है

बस तुम्हीं पे आस है

 

अपने हुनर और ज्ञान का

धरा से आकाश तक

माँ भारती की शान का

झंडा फहराए चल

पूर्व से ही विश्व में

फैलता  प्रकाश है

बस तुम्हीं पे आस है

बस तुम्हीं पे आस है

 

(मौलिक एवम् अप्रकाशित )

कंवर करतार ‘खन्देह्ड़बी’

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Comment by कंवर करतार on January 6, 2015 at 1:22pm

भाई सोमेश ,निस्छ्न्द आधुनिक कविता इसे समझता हूँ Iठीक फरमाया, वास्तब में अतुकान्त नहीं,टिपणी के लिए धन्यबाद I 

Comment by कंवर करतार on January 6, 2015 at 1:14pm

भाई वामनकर ,कविता सराहना के लिए आभार I

Comment by कंवर करतार on January 6, 2015 at 1:11pm

त्रिपाठी जी ,उत्साह बर्धन के लिए धन्यबाद I

Comment by somesh kumar on January 6, 2015 at 10:56am

भाई जी ये कविता ,अतुकांत तो नहीं है ,कविता  में युवाओं को जागृत करने के लिए  जो आह्वान आप ने किया है ,आशा है उस भाव को ये कविता पोषित कर सकें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 5, 2015 at 8:50pm

सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

सुन्दर पंक्तियाँ -

सर कभी न झुके

आबाज कभी न रुके

चिंगारी इक लगाए चल

ज्ञानालोक तू फैलाए चल

मशाल तेरे हाथ है

कुछ तुम्हीं में खास है

बस तुम्हीं पे आस है

Comment by maharshi tripathi on January 5, 2015 at 8:45pm

एक सामान लय वाली ,अदभुत कविता |

आपको बधाई आदरणीय |

Comment by कंवर करतार on January 5, 2015 at 8:34pm

डॉ.श्रीवास्तव जी,आप जैसे विद्वान को कविता अच्छि लगी है ,सौभाग्यI धन्यबाद I

Comment by कंवर करतार on January 5, 2015 at 8:30pm

भाई दुबे जी,कविता की सराहना के लिए आभार I

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 5, 2015 at 7:46pm

सर कभी न झुके

आबाज कभी न रुके

चिंगारी इक लगाए चल

ज्ञानालोक तू फैलाए चल

मशाल तेरे हाथ है

कुछ तुम्हीं में खास है

बस तुम्हीं पे आस है-------------------------- sundar bhav I

 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 5, 2015 at 6:25pm

खूबसूरत/जोशवर्धक कविता , हार्दिक बधाई, आदरणीय  डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी' जी !

कृपया ध्यान दे...

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