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यूँ मुझे याद करके

यूँ  मुझको याद करके

हिय में ना धार उठाओ

शांत-शीतल मन ताल है

छेड़कर,ना भंवरे उठाओ |

स्मृतियाँ आषाढ़ी नदी सी

वेग-दासी हो रही हैं  

तुलना प्रस्तुत की पुरा से  

मन-उदासी हो रही है |

मुश्किलों से बाँधा है मन

और गाठें मत बढाओ |

यूँ  मुझको  याद करके

हिय में ना धार उठाओ

जब तक रहता अधूरा

प्रेम की ही पूर्णंता है

वासनारत देव हरदम

भक्त नए ढूंढता है |

मुक्त मधुप मकरंद पा

कब कलि की टोह लेता

वो रसिक स्वार्थलोलुप

संधान नए खोज लेता |

मैं चला बनने पतंगा

अलि मुझको ना बनाओ |

 यूँ  मुझको  याद करके

हिय में ना धार उठाओ |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

 

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 8:20pm

मुश्किलों से बाँधा है मन

और गाठें मत बढाओ |.....बहुत खूब सोमेश भाई, हार्दिक बधाई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 27, 2014 at 9:48pm

सुन्दर भावाभिव्यक्ति .... आदरणीय सोमेश भाई इस प्रस्तुति  के लिये बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2014 at 6:50pm

आदरणीय सोमेश भाई इस प्रयास के लिये बधाई

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