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शामिल न हुए अब तक हम उनकी दुआओं में,

(दोस्तों मतला लिखा था तरही मुशायरे के लिए ...लेकिन कल पेशावर की घटना ने इतना भाव विह्वल कर दिया कि जो कुछ बन पड़ा है,   बच्चो को श्रद्धांजली के रूप में आज ही पेश कर रहा हूँ .)

शामिल न हुए अब तक हम उनकी दुआओं में,

पर आज भी रखते हैं हम उनको ख़ुदाओं में.

हैवान हुए जाते हो अपनी अनाओं में,

अल्लाह नहीं दिखता बच्चों की अदाओं में?

मक़्तल में बदल डाला तालीम के मरकज़ को  

बारूद की बू अबतक फ़ैली है हवाओं में.

बस्तों से क़िताबों तक सब खून में लिपटे हैं, 

मासूम सी चीख़ें हैं, ख़ामोश ख़लाओं में.

हर कोई दुआ-गो है पर बाँझ दुआएँ हैं,    

अब हाल नहीं बाक़ी आहों में सदाओं में.

ये कौन सा मज़हब है ये कैसी इबादत है,

अल्लाह भी रखता है बच्चो को ख़ुदाओं में. 


अल्लाह निगेह्बां है उन नन्हे चराग़ों का,

जो बुझ के हुए रौशन ज़ुल्मत की फ़ज़ाओं में.
.

अश्रुपूरित श्रद्धांजलि 
निलेश "नूर"

Views: 516

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Comment by somesh kumar on December 19, 2014 at 11:42pm

ये कौन सा मज़हब है ये कैसी इबादत है,

अल्लाह भी रखता है बच्चो को ख़ुदाओं में. 

 अक्षर नहीं पा रहा हूँ इस सम्वेदना इस पीड़ा पर ,पर रचना एक श्रधान्जली की तरह है और मैं भी इसमें शामिल हो रहा हूँ 


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Comment by rajesh kumari on December 18, 2014 at 7:40pm

अल्लाह निगेह्बां है उन नन्हे चराग़ों का,

जो बुझ के हुए रौशन ज़ुल्मत की फ़ज़ाओं में.-----बहुत खूब ...एक सच्ची श्रद्धांजली 

बधाई आपको इस सार्थक  सामयिक ग़ज़ल के लिए. 
.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2014 at 6:01pm

नीलेश जी

बहुत  बेहतरीन i मासूमो  का कत्लेआम अक्षम्य  अपराध है  i कवि या शायर का दुःखी होना लाजिम है  i

Comment by Hari Prakash Dubey on December 18, 2014 at 11:53am

बारूद की बू अबतक फ़ैली है हवाओं में.......बहुत सुन्दर नीलेश जी 


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Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2014 at 11:14pm

आदरणीय नीलेश भाई , आपकी भावांजलि में मेरी भी भावनाये शामिल कर कर रहा हूँ । बहुत सुन्दर मार्मिक गज़ल के लिये दिल से बधाईयाँ स्वीकार करें ।


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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 17, 2014 at 10:50pm

पेशावर के आर्मी स्कूल पर हुए तालिबानी हमले की दुनिया को झकझोर देने वाली इस घटना ने  हैवानियत की सीमायें भी लांघ दी है. मासूमों को श्रद्धांजली. सच कहा आपने --

'अल्लाह निगेह्बां है उन नन्हे चराग़ों का,

जो बुझ के हुए रौशन ज़ुल्मत की फ़ज़ाओं में.'

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