For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनबूझा मौसम

आसमानी बिजली

मूसलाधार बारिश

फिर सूरज की चमकती किरणें

डाल पर फूल का नव रूप धर आना

मौसम के बाद एक और मौसम ...

यह सब सिलसिला है न ?

पर किसी एक के चले जाने के बाद

यहाँ कहीं नए मौसम नहीं आए

एक मौसम लटक रहा है

उदासी का

डाल पर रुकी, लटक रही टूटी टहनी-सा

भय और शंका और आतंक का मौसम

भिगोए रहता है पलकों को

आधी रात

क्या नाम दूँ

टूटे विश्वास का धुँधलापन ओढ़े

कुहरीले अनबूझे इस मौसम को आज?

----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 753

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on December 24, 2014 at 12:43am
वाह क्या कहूँ आदरणीय एक और ज़ोरदार प्रस्तुति।।हार्दिक बधाई आपको।।सादर
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 23, 2014 at 8:30pm

एक मौसम लटक रहा है

उदासी का

डाल पर रुकी, लटक रही टूटी टहनी-सा

भय और शंका और आतंक का मौसम

भिगोए रहता है पलकों को

आधी रात

......सजल नयन से पढता हूँ आपकी इन पंक्तियों को आदरणीय विजय निकोर साहब!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 22, 2014 at 2:51pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , सच है किसी प्रिय के चले जाने के बाद ऐसा ही लगता है मानो जाने वाला सब कुछ के गया हो अपने साथ , मौसम भी । जाने का दर्द साकार हो उठा है ! बधाइयाँ आदरणीय ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2014 at 2:09pm

आ०निकोर जी

किसी एक के चले जाने के बाद ----- आपकी रचना को नियमित पढनेवाले इस 'किसी एक' को बखूबी जानते है i अपरिचित है मगर पहचानते  है  i कविता में इस वांछित के आने के बाद फिर कुछ नहीं बचता सिवाय उस अव्यक्त पीड़ा के जिसे आप बार बार अनेक तरह से रूपायित करते रहते है  i आमीन i सादर  i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 21, 2014 at 6:58pm

क्या नाम दूँ

टूटे विश्वास का धुँधलापन ओढ़े

कुहरीले अनबूझे इस मौसम को आज?..............बहुत सुंदर,सर. अंतर्द्वंद को बहुत उम्दा भाव दिए आपने रचना में. हार्दिक बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2014 at 2:54pm

आदरणीय विजय निकोर साहब, आपकी प्रस्तुतियों में एकाकी पीड़ा, मनोमालिन्य को नकारती सुनहरी यादें, उन यादों की बारम्बरता इस शिद्दत से स्थान पाती हैं कि दर्द आकार ले सीधा सामने खड़ा दिखता है. यह साकार दर्द आपके लेखन का संबल है. आपका भावुक मन वर्णनप्रिय है, आदरणीय, जिसके प्रति मैं एक पाठक के तौर पर सदा ही निसार रहा हूँ.
शीत के नैराश्य भाव गहनता से शाब्दिक हुए हैं, इसमें दो राय नहीं.
हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें आदरणीय.

एक बात:
आदरणीय, ’कोई’ के बाद संज्ञा और तदनुरूप क्रिया एकवचन की हो ऐसा व्याकरण सम्मत है. अतः, यहाँ कोई नए मौसम नहीं आए को या तो यहाँ कोई नया मौसम नहीं आया किया जाय या यहाँ कभी नए मौसम नहीं आए किया जाय.

सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 17, 2014 at 8:46am

आ0  निकोर जी

पर किसी एक के चले जाने के बाद

यहाँ कोई नए मौसम नहीं आए----- सच है कोई अभाव ऐसा होता है जो सारी खुशियों और जीवन को बे मायने कर देता है i आपकी कवितायें इस दर्द को ख़ूबसूरती से बयान करती हैं  i सादर i

Comment by Priyanka singh on December 17, 2014 at 12:26am

क्या नाम दूँ

टूटे विश्वास का धुँधलापन ओढ़े

कुहरीले अनबूझे इस मौसम को आज?......आपको लेखनी ....दर्द को बयाँ करती आपकी रचना ..कुछ दर्द जो किसी भी खुबसूरत मौसम के आने से नहीं बदलता ...कुछ जो ठहरा रहता है ...आज और कल के चाकों के बीच ..उसका बेनाम सा रिश्ता ...क्या कहें ...बहुत खूब सर ...हर बार की तरह ...नमन आपकी लेखनी को ...नमन ...

Comment by somesh kumar on December 16, 2014 at 10:45pm

क्या नाम दूँ

टूटे विश्वास का धुँधलापन ओढ़े

कुहरीले अनबूझे इस मौसम को आज?

बेहद सुंदर एवं भावनात्मक कविता ,किसी की कमी जो कोई और नहीं पूरी कर सकता 

तेरे दायरे से निकल नहीं पाया/ मेरा मौसम आज तक बदल नहीं पाया 

जल गए कितने सितारे रात को /मेरा सूरज लेकिन बदल नहीं पाया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 16, 2014 at 10:43pm

आदरणीय विजय निकोर सर सुन्दर और बेहतरीन रचना है बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ…"
3 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने…"
16 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
""जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश…"
20 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"    सरसी छंद * हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार। खड़े हुए  मतदाता सारे, चुनने…"
27 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service