For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंतिम शब्द

द्वार खुला था

तुम दहलीज़ पर अहम्‌ के जूते उतार

सुस्मित शरद चाँदनी-सी कभी

कभी भोर की प्रथम किरण बनी

बाँहें फैलाए घर के भीतर चली आई

तुमने जिसे मंदिर बनाया

वह आँसू-डूबा उल्लास-भरा

मेरा मन था।

मन पावन था पावन रहा

कब कहा मैंने भगवान हूँ मैं

तुमने मुझको भगवान बनाया

और अब असीम बेरहमी से सहसा

जूतों समेत मेरे सीने पर चल कर

तुम्हारा प्रहार पर प्रहार ... उफ़ !

भीतर नभ में कितने तारे फूटे

कानों में पिस्तौल बन्दूक की ध्वनियाँ

कंपित मन लिए दुख की कथाएँ

बेमाप अकेले में कराह उठा

"हे   रा...म"

-------

-- विजय निकोर

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 773

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 27, 2015 at 10:59am

//बहुत सुंदर रचना, सर. दिल को छू जाती है//

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय जितेन्द्र भाई।

Comment by vijay nikore on April 27, 2015 at 10:58am

//बहुत खूब , प्रत्येक पंक्ति से दर्द झलकता है//

ऐसी सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया अन्नपूर्णा जी। 

Comment by vijay nikore on April 27, 2015 at 10:56am

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीया मीना जी।

Comment by vijay nikore on April 27, 2015 at 10:55am

//एक सामयिक घटना को बहुत खूबसूरत शब्द मिले हैं , बहुत मार्मिक रचना हुई है //

आपकी सराहना सदैव मनोबल बढ़ाती है, आदरणीय भाई गिरिराज जी। हार्दिक धन्यवाद।

Comment by vijay nikore on April 27, 2015 at 10:51am

//मार्मिकता लिए जिस प्रकार आप ने शब्दों को अभिव्यक्त किया है वह निस्संदेह दिल को छूती  है..//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विरेन्दर जी।

Comment by vijay nikore on April 27, 2015 at 10:48am

//बहुत ही सशक्त ,समसामयिक रचना//

आदरणीय हरि प्रकाश जी, रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on April 27, 2015 at 10:44am

आदरणीय भाई शरदिन्दु जी, पाठकों ने इस रचना को ठीक ही समझा है। हालांकि शब्द "हे राम" पूज्य गाँधी जी की पुण्य स्मृति को पटल पर ले आते हैं, यहाँ इस रचना में मैं गाँधी जी को संबोधित नहीं कर रहा था। आपका हार्दिक आभार।

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 26, 2015 at 7:12pm
आदरणीय विजय निकोर जी , आपने इन पंक्तियों //When it enters , it enters silently , when it goes , it bangs all the doors //की कविता का सन्दर्भ जानना चाहा पर खेद है वह मुझे याद नहीं रहा. यह भी याद नहीं कि कब कहाँ इन्हें पढ़ा था था , पर ये पंक्तियाँ सदैव ही उस समय याद आ जाती हैं जब कहीं कोई आस्था, प्रेम या विशवास टूटता है या ध्वस्त होता है, वह चाहे किसी का व्यक्तिगत हो या किसी बड़े महा पुरुष का , किसी गहरे विश्वास का हो या किसी बहुत छोटीसी कोमल भावनाओं का हो। ………… सही भी है विशवास , प्रेम या आस्था का जन्म ( आगमन ) बहुत ही धीरे धीरे शान्ति पूर्ण ढंग होता है , पर जब यह टूटता है तो बहुत शोर के साथ साथ छोड़ता है , जैसे सारे खिड़की दरवाजे शोर के साथ खोल कर कोई जबरदस्ती जा रहा हो …।
आपको यह पंक्तियाँ पसंद आईं , अच्छा लगा , आभार।
Comment by vijay nikore on April 26, 2015 at 6:46pm

//बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति है ....  दिल को छूती प्रस्तुति ...//

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी।

Comment by vijay nikore on April 26, 2015 at 6:43pm

//कविता की भावनाओं में खो सा जा रहा हूँ |इस वेदना को अनुभव किया है |इसलिए इस रचना के साथ आत्मसात हो गया //

रचना को आत्मसात करने के लिए, अनुभव करने के लिए, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सोमेश जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
yesterday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service