For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परिमूढ़ प्रस्ताव

परिमूढ़ प्रस्ताव

अखबारों में विलुप्त तहों में दबी पड़ी

पुरानी अप्रभावी खबरों-सी बासी हुई

ज़िन्दगी

पन्ने नहीं पलटती

हाशियों के बीच

आशंकित, आतंकित, विरक्त

साँसें

जीने से कतराती

सो नहीं पातीं

हर दूसरी साँस में जाने कितने

निष्प्राण निर्विवेक प्रस्तावों को तोलते

तोड़ते-मोड़ते

मुरझाए फूल-सा मुँह लटकाए

ज़िन्दगी...

निरर्थक बेवक्त

उथल-पुथल में लटक रही

अनिर्णीत

खंडित

समस्त संकल्पों को आदतन त्यागकर

लौट आती है अविरत

यंत्रबद्ध एक ही परिमूढ़ अपाहिज प्रस्ताव पर

कि चलूँ, कुछ और चलूँ, देख लूँ

शायद मोड़ लेती हुई सड़क

की दूसरी ओर

इस बार .... शायद इस बार

बेहिसाब झुठलावा न हो

अकेलापन न हो

न हो उलझन

न भटकन ...

 -- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 810

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 2, 2015 at 3:45pm

//आपकी रचनाओं का पाठको से बतियाना अब चकित नहीं करता क्योंकि आपकी रचनाएँ स्वयं में अर्थवान संज्ञा हुआ करती हैं.
......वाह ! व्यामोह को खूब सटीक शब्द मिले हैं//

यह कह कर आपने मुझको, मेरे रचना-क्रम को, बहुत मान दिया है। आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ जी।

Comment by vijay nikore on January 1, 2015 at 1:36pm

//रचना गम्भीर होने के साथ-साथ बहुत आकर्षक भी है। रचना की शब्दावली,गति और यति ने मन मोह लिया।
रचना सरलता में गहनता समेटे हुए है //

रचना को इस प्रकार मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया विन्दु जी।

Comment by vijay nikore on December 22, 2014 at 3:23pm

रचना की सराहना के लिए और अपने विचार साझे करने के  लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया प्रियंका जी।

Comment by vijay nikore on December 21, 2014 at 3:03am

आदरणीया सविता जी, रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on December 18, 2014 at 4:32pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय आशुतोष जी।

Comment by vijay nikore on December 17, 2014 at 7:41am

आदरणीय हरि प्रकाश जी, रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 16, 2014 at 11:38pm

आपकी रचनाओं का पाठको से बतियाना अब चकित नहीं करता क्योंकि आपकी रचनाएँ स्वयं में अर्थवान संज्ञा हुआ करती हैं.

समस्त संकल्पों को आदतन त्यागकर
लौट आती है अविरत
यंत्रबद्ध एक ही परिमूढ़ अपाहिज प्रस्ताव पर
कि चलूँ, कुछ और चलूँ, देख लूँ
शायद मोड़ लेती हुई सड़क
की दूसरी ओर
इस बार .... शायद इस बार
बेहिसाब झुठलावा न हो
अकेलापन न हो
न हो उलझन
न भटकन ...

वाह ! व्यामोह को खूब सटीक शब्द मिले हैं आदरणीय विजय निकोरजी.
सादर बधाइयाँ

Comment by vijay nikore on December 6, 2014 at 3:37am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।

Comment by vijay nikore on December 4, 2014 at 5:13pm

रचना पर समय देने के लिए और अपने अच्छे विचार देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by Vindu Babu on December 3, 2014 at 6:19am

रचना गम्भीर होने के साथ-साथ बहुत आकर्षक भी है। रचना की शब्दावली,गति और यति ने मन मोह लिया।
रचना सरलता में गहनता समेटे हुए है।
कविता बहुत भली लगी आदरणीय।
आपको हार्दिक बधाई ।
सादर
शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service