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नवगीत : तुम अब तक भूखे हो?

एक प्रयास ...नवगीत : तुम अब तक भूखे हो?

हम सबको तो मिला चबैना,
तुम अब तक भूखे हो?
बंटता खूब चुनावी चंदा,
तुम अब तक रूखे हो?

पंजा वाले, सइकल वाले,
कुछ हाथी वाले थे.
खिले फूल थे, दीवारों पर,
सब अपने वाले थे.
बटी बोतलें गली गली में,
तुम अब तक छूछे हो? 

हम सबको तो मिला चबैना,

तुम अब तक भूखे हो?

हाथों हाथ उठा दद्दा को,
कम्बल नया उढाया.
कबरे कुत्ते के मरने का,
उनने शोक जताया.
खूब बही वादों की गंगा,
तुम अब तक सूखे हो.
हम सबको तो मिला चबैना,
तुम अब तक भूखे हो?

लगे पोस्टर, फटे पोस्टर,
जात- पांत के दंगे.
भाई भतीजों में बंटवारे,
घर-घर भड़के पंगे.
हार-जीत कर, गले मिले वे, 
तुम अब तक रूठे हो?
हम सबको तो मिला चबैना,
तुम अब तक भूखे हो?
**हरिवल्लभ शर्मा दि.06.12.2014

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2014 at 3:44pm

आदरणीय हरि भाई,  वाकई मजा आ गया.
इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 8, 2014 at 11:47am

हाथों हाथ उठा दद्दा को,
कम्बल नया उढाया.
कबरे कुत्ते के मरने का,
उनने शोक जताया.
खूब बही वादों की गंगा,
तुम अब तक सूखे हो.
हम सबको तो मिला चबैना,
तुम अब तक भूखे हो? --वाह वाह नागार्जुन बाबा की शैली याद आ गई 

बहुत बढ़िया प्रस्तुति ...हार्दिक बधाई आपको 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 7, 2014 at 6:29pm

भावों को सुन्दर अभिव्यक्ति देने का प्रयास हुआ है, अच्छी रचना लगी, बधाई आदरणीय हरिबल्लभ शर्मा जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 6, 2014 at 9:09pm
हम सबको तो मिला चबैना,
तुम अब तक भूखे हो?
बंटता खूब चुनावी चंदा,
तुम अब तक रूखे हो?
बहुत सुन्दर , सार्थक एवं सफल प्रयास , बधाई , आदरणीय हरी वल्लभ शर्मा जी , इस प्रयास के लिए।

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