For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम याद तुम्ही को करते थे

हम याद तुम्ही को करते थे,
छुप छुप के आहें भरते थे,
मदहोश हुआ जब देख लिया
सपनों में अब तक मरते थे.

रूमानी चेहरा, सुर्ख अधर,
शरमाई आँखे, झुकी नजर,
पल भर में हुए सचेत मगर,
संकोच सदा हम करते थे.

कलियाँ खिलकर अब फूल हुई,
अब कहो कि मुझसे भूल हुई,
कंटिया चुभकर अब शूल हुई,
हम इसी लिए तो डरते थे.

अब होंगे हम ना कभी जुदा,
बंधन बाँधा है स्वयं खुदा,
हम रहें प्रफुल्लित युग्म सदा,
नित आश इसी की करते थे.

(मौलिक व अप्रकाशित )
- जवाहर लाल सिंह

Views: 805

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2014 at 1:35pm

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय जवाहर लाल जी //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 2, 2014 at 12:55pm

मदहोश हुआ जब देख लिया 
सपनों में अब तक मरते थे.....सुन्दर प्रस्तुति , बधाई श्री जवाहर जी ।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 2, 2014 at 12:20pm

हार्दिक आभार आदरणीय श्री श्याम नारायण वर्मा जी!

Comment by Shyam Narain Verma on December 1, 2014 at 5:00pm

बहुत खूब, सुन्दर प्रस्तुति.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 1, 2014 at 12:44pm

उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्री गोपाल नारायण साहब!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 1, 2014 at 12:43pm

हार्दिक आभार आदरणीय भूवन निश्तेज जी!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 1, 2014 at 12:42pm

हार्दिक आभार आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 1, 2014 at 12:41pm

विश्लेषित टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्री सोमेश कुमार जी!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 1, 2014 at 11:09am

अब होंगे हम ना कभी जुदा,
बंधन बाँधा है स्वयं खुदा,
हम रहें प्रफुल्लित युग्म सदा,
नित आश इसी की करते थे.---------kya sankalp hai I vaah I

Comment by भुवन निस्तेज on December 1, 2014 at 8:32am

sundar.....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service