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लघुकथाः कुत्ता

"पापा ,आपको अब हमारे यहाँ दो महीने हो गए हैं, अब छोटू का नंबर है !आपकी टिकट करवा दी है !"

"ठीक है ,बेटा !"

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by Shubhranshu Pandey on October 28, 2014 at 12:08pm

सुन्दर कथा. गहरे तक उतरती चली गयी.

सादर.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 16, 2014 at 10:17am

शीर्षक के सन्दर्भ में भाई गणेश बागी की जी लघुकथा लघुकथा का उदहारण बिलकुल सटीक है भाई नीलेस जी.

Comment by Neeles Sharma on October 16, 2014 at 9:44am

आदरणीय योगराज सर,
आप तो मेरे गुरु हैं ,आपके तीन महीने का प्रयास अब दिखने लगा है मेरे लेखन में ( थोड़ा थोड़ा ) !
इस कथा में मेरे लिए खास बात रही शीर्षक ! इसका श्रेय गणेश बागी सर की लघुकथा गुब्बारा को जाता है ! उसी लघुकथा में मैंने देखा शीर्षक का कहानी में सीधे उपयोग न करते हुए कहानी के भाव के आधार पे शीर्षक रखा गया (मुझे पता नहीं इस हुनर का साहित्य में क्या नाम है ?) लेकिन इससे कहानी बहुत मारक हो जाती है ! पाठक थोड़ा और गहराई में सोचता है और ऐसे शीर्षक एक्स्ट्रा पंच का काम करते हैं !
योगराज सर ,बागी सर को बहुत बहुत धन्यवाद और सभी मित्रों का तहेदिल से शुक्रिया जिन्होंने रचना को पसंद कर मुझे प्रोत्साहित किया !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 15, 2014 at 6:04pm

नीलेश जी
अति सुन्दरi केवल दो लाइन i गागर में सागर i


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 15, 2014 at 3:03pm

जबरदस्त मारक क्षमता है आदरणीय नील्स जी, बधाई स्वीकार करें।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 14, 2014 at 11:42pm

बहुत बढ़िया लघुकथा. जिन्होंने हमारा पालन किया, उन्हें हम क्यूँ ढोयें..? बहुत-बहुत बधाई आदरणीय नीलेश जी

Comment by विनय कुमार on October 14, 2014 at 11:40pm

बहुत सुन्दर लघुकथा , बधाई स्वीकारें..

Comment by somesh kumar on October 14, 2014 at 10:59pm

सार्थक रचना भाई जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 14, 2014 at 6:48pm

आ० नीलेश शर्मा जी

आश्रित पिता की शटल कॉक बनी ज़िंदगी को बहुत सटीक शब्द मिले हैं और शीर्षक भी एक दम उपयुक्त 

बहुत बहुत बधाई इस सान्द्र्तम लघुकथा प्रस्तुति पर 

Comment by Alok Mittal on October 14, 2014 at 1:37pm

बहुत सही लिखा है आपने नीलेश भाई ....

कृपया ध्यान दे...

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