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राह देखी सूर्य की भर रात हमने - ( गजल ) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122     2122     2122

*************************
सिंधु  मथते  कर पड़ा  छाला हमारे
हाथ  आया  विष  भरा प्याला हमारे

***
धूर्तता  अपनी  छिपाने  के लिए क्यों
देवताओं    दोष    मढ़   डाला  हमारे

***
भाग्य सुख को ले चला जाने कहाँ फिर
डाल  कर  यूँ  द्वार  पर  ताला  हमारे

***
हर  तरफ  फैले हुए हैं दुख के बंजर
खेत  सुख  के  पड़ गया पाला हमारे

***
राह  देखी  सूर्य  की  भर   रात हमने
इसलिए  तन  पर  लगा काला हमारे

***
इक नदी को, की बहुत कोशिश यहाँ पर
भाग्य  से  ही   आ  बसा  नाला  हमारे

***
ले  रहे  संन्यास  ऐसा  मत समझना
जोगियों   सी  कंठ  जो  माला  हमारे

***
धड़कनें  हर हाल कह देंगी ‘मुसाफिर’
रख  के  देखो प्यार का आला हमारे

****
( रचना - 15 अगस्त 2012 )
मौलिक और अप्रकाशित
किंतु संशोधित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’


Views: 605

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 11:07am

आदरणीय भाई, सन्तलाल जी, गजल की प्रशंसा और स्नेहाशीष के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 11:00am


आदरणीय भाई गिरिराज जी सर्वप्रथम गजल पर अपनी प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन करने हेतु धन्यवाद स्वीकारें । आपने अपनी टिप्पणी में जिस बात का स्पष्टीकरण चाहा है वह यही है कि दोष देवताओं ने मढ़ा उन लोगों पर जिनके हाथों में सिंधु मथते हुए छाला पड़ गया । शायद मेरे सम्प्रेषण में कोई कमी रह गयी है उससे आपको दुविधा हो गयी ।
क्या यहां पर इसे इस प्रकार करने से भाव स्पष्ट हो रहा है या नहीं मार्गदर्शन करें ।


देवताओं !  दोष    मढ़   डाला  हमारे   //    देवता ने   दोष    मढ़   डाला  हमारे

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 10:59am


आदरणीय भाई जितंेद्र जी , गजल पर आपकी उपस्थिति से जो उत्साहवर्धन हुआ उसके हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 10:59am


आदरणीय भाई गोपाल नारणन जी निरंतर उत्साह वर्धन और स्नेहाशीष के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 10:58am

आदरणीय भाई श्याम नारायन जी गजल का अनुमोदन करने हेतु हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by Santlal Karun on September 1, 2014 at 5:26pm

आदरणीय लक्षमण धामी जी,

इस सुन्दर हिन्दी ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2014 at 4:33pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , एक और बढ़िया ग़ज़ल की रचना के लिए बधाइयाँ |

आदरणीय - देवताओं    दोष    मढ़   डाला  हमारे  , इस मिसरे में आप क्या कहना चाहते हैं , समझ नहीं पाया --

१-- हमारे देवताओं पर दोष मढे  गए ,  २ - देवताओं ने हम पर दोष मढ़  दिए  , ३ , हमारे शब्द  किस के लिए उपयोग हुआ है , जिसके हाथ में छाला पडा

इन तीनो बातों का केवल अंदाजा कगाना पड़  रहा है  | हो सकता है मेरी समझ में नहीं आ रही हो , पर औरों को आ रही हो | अगर ऐसा है तो क्षमा करेंगे |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2014 at 12:12pm

वाह! क्या खूब गजल कही है आपने आदरणीय लक्ष्मण जी. हर एक शेर तारीफ़ के काबिल हुआ है. तहे दिल से बधाई आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 29, 2014 at 12:25pm

धामी जी

अच्छी  गजल कही आपने  i

धूर्तता  अपनी  छिपाने  के लिए क्यों
देवताओं    दोष    मढ़   डाला  हमारे

Comment by Shyam Narain Verma on August 27, 2014 at 4:31pm
सुन्दर गज़ल .... सादर बधाई.....

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