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नव गीत ////आबाद होंगे कब जीवन मरुस्थल !

सोचता रहता हूँ

उदासियो में घिरकर

प्रतिक्षण-प्रतिपल 

आबाद होंगे कब जीवन -मरुस्थल ?

 

काल की क्रूरता ने

मेरे प्रयासों को

आशा-उजासो को

जीवन-विकल्पों को  

कर डाला धूमिल

कर्म हुआ निष्काम

कार्य भी निष्फल

आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?

 

सूने शून्य जीवन में

नियति के बंधन से

करुणा से क्रंदन से

पूरे जो न हो पायें

स्वप्न हुए चंचल  

पंगु प्रेरणा के पग

शान्त और निश्चल

आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?

 

प्रातः की बेला ने

मुस्क्याते फूलो से

सरिता के  कूलों से

सन्देश भेजा यूँ

लहराकर कलकल

रुकना ही मरना है

चलता जा अविरल

आबाद होंगे तब जीवन-मरुस्थल !

 

(मौलिक व अप्रकाशित )

 

   

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 27, 2014 at 9:41pm

आशुतोष जी

आपका आभारी हूँ  i

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 27, 2014 at 2:56pm

आदरणीय गोपाल सर ...बहुत ही सार्थक सन्देश देती चिंतन से ओतप्रोत शानदार रचना हेतु ढेरों बधाई सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 26, 2014 at 6:13pm

आदरणीय विजय जी

आपका  सतत आभारी हूँ i

Comment by विजय मिश्र on August 26, 2014 at 6:03pm
निश्चित ही जीवन संजीवन देने वाली और निरंतर क्रियाशीलता हेतु ऊर्जावान करने वाली सशक्त रचना |बधाई आ० गोपालजी |
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 26, 2014 at 4:55pm

प्रिय मित्र

आपक स्नेह सर आँखों पर i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 26, 2014 at 4:54pm

महनीया

आपका प्रोत्साहन मिला i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 26, 2014 at 4:53pm

पवन कुमार जी
आपका आभार i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2014 at 8:44pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , लाजवाब गीत रचना की है , हल देती हुई अंतिम पंक्तियों के लिए विशेष बधाइयाँ |

प्रातः की बेला ने

मुस्क्याते फूलो से

सरिता के  कूलों से

सन्देश भेजा यूँ

लहराकर कलकल

रुकना ही मरना है

चलता जा अविरल

आबाद होंगे तब जीवन-मरुस्थल ! खूब , बहुत सुन्दर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2014 at 8:19pm

बहुत सुन्दर अप्रतिम प्रस्तुति ...ढेरों बधाईयाँ सादर 

Comment by Pawan Kumar on August 25, 2014 at 5:40pm

बहुत सुन्दर ....
सादर बधाई

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