धूल में दबी हुयी ये डायरी
जिसकी एक एक परत की हैं ये यादें
हर एक सफा तुम्हारी याद है
.... न जाने कहाँ कहाँ रखा उसे
..... आलमारी मे ठूसा
..... बक्से में दबाया
.... ऊपर टाँड़ पर रखा
अटैची मे रखा ....
उसके पन्नों के रंग उतर गए
मगर लिखावट वही रही
आज भी देखकर उन सफ़ों को
और आपके उन हिसाबों को देखकर
उन हिसाबों मे हमारा भी अंश हैं
जिन्हे आज देखकर महसूस करता हूँ
उन सफ़ों पे लिखा आपका हिसाब
दूध वाले को - 65 रुपये
सब्जीवाले को - 120 रुपए
टाफी में - 2 रुपए
बच्चों की फीस - 20 रुपये
और भी बहुत कुछ
आज से इसका गहरा संबंध है
इन सफ़ों में आपकी ममता की जो खुशबू है
डायरी की एक एक परत मे जो छिपा है
वह हमारे जाने के बाद भी बोलेगा
यादें आदमी के जाने के बाद भी बोलती हैं
इन पन्नों को सहेज दो
बंद कर दो, क्यूंकी
माँ की याद तो आ गई
मगर माँ .... ...
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद आ0 सौरभ पांडे सर... आपका सुझाव सर आँखों पर ... सादर ...
ममत्व भाव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन नहीं होता, मात्र नत होना होता है. भाव से बहुत ही सात्विक प्रस्तुति है. जबकि शिल्प से सहज. हार्दिक बधाई स्वीकार करें, भाईजी.
अलबत्ता, रचना की अंतिम पंक्ति हट जाय तो रचना निर्पेक्ष होती हुई भी अत्यंत संप्रेषणीय हो जायेगी.
ऐसा मैं सोचता हूँ.
शुभ-शुभ
आ0 निकोर सर ... बहुत बहुत धन्यवाद ... आभार
आ0 मीना दी ... धन्यवाद .... सादर ॥
आ0 प्राची दी ... आपके आशीर्वचन से मे धन्य हुआ ... सादर
आ0 गोपाल सर धन्यवाद उत्साहवर्धन के लिए ... आभार
//यादें आदमी के जाने के बाद भी बोलती हैं
इन पन्नों को सहेज दो
बंद कर दो, क्यूंकी
माँ की याद तो आ गई//
दिवंगत आत्मा की याद को आपने बहुत ही खूबी से, सरलता से मान दिया है। हार्दिक बधाई, आदरणीय आमोद जी।
मर्मस्पर्शी रचना ...
डायरी में लिखा हिसाब सिर्फ हिसाब न हो कर जीवन का फलसफा कहता है... माँ साथ ना हो कर..आज भी चैतन्य रूप में ज़िंदा है उस चेतना को डायरी पर जमी धुल की परतें मिटा सकें..ऐसी तो उनकी हैसियत नहीं.
मन को स्पर्श करने वाली इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आ० आमोद श्रीवास्तव जी
आमोद जी
मुझे भी माँ याद आ गयी i अच्छी रचना है i सुन्दर i
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online