“ अरे! बेटा..तैयार हो रहे हो. अगर बाहर तक जा रहे हो तो अपने पिता कि दवाई ले आओ, कल कि ख़त्म हुई है”
“ अरे! यार मम्मी!! मैं जब भी बाहर निकलता हूँ , आप टोंक देती हो. आपको पता है न, हमारी पूरी एन.जी.ओ. की टीम पिछले हफ्ते से गरीब और असहाय लोगों कि सहायता के लिए गाँव-गाँव घूम रही है. शायद ! आप जानती नही हो, अभी मेरी सबसे बढ़िया प्रोग्रेस है पूरी टीम में ”
जितेन्द्र ‘गीत’
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आपकी शुभकामनायें व् बधाई , सर आँखों पर आदरणीय सौरभ जी. आपकी उपस्थिति से मनोबल दोगुना हुआ आपका ह्रदय से आभारी हूँ. स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा
सादर!
सच कहा है आप ने भाई, समाज सेवा घर से शुरू हो तो ज्यादा फलदाई हो सकती । बहुत बधाई
अच्छी लगी आपकी लघु कथा .... शुभकामनायें आपको
जीतू भाई
लघु कथा के प्रतिमान में ढली सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति i
एक् कथाकार के तौर पर आपकी निगाहें सजग हैं. कथ्य के प्रस्तुतीकरण में चुटिलापन ध्यान खींचता है.
इस लघुकथा के प्रस्तुत होने पर शुभकामनाएँ तथा बधाइयाँ. ..
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