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तीन दोहे ...............डॉ० प्राची

प्रेम अगन करती सदा, चेतन का विस्तार

रोम-रोम तप भाव-तन, धरे नवल शृंगार

 

मैं-तुम भेद-विभेद हैं, मायावी मद भ्राम

द्वैत विलित अद्वैत सत, चिदानन्द अविराम

 

सूक्ष्म धार ले स्थूल तन, पराश्रव्य हो श्रव्य

गुह्य सहज प्रत्यक्ष हो, सधें नियत मंतव्य 

डॉ० प्राची 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 19, 2014 at 10:41pm

प्रिय महिमा जी 

आपको यह भावाभिव्यक्ति पसंद आयी...जानना संतोषकारी है 

धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 19, 2014 at 10:40pm

दोहों का सनातन भाव सराहने के लिए आभार आ० लक्ष्मण जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 19, 2014 at 10:39pm

दोहों की अन्तर्दशा पर आपकी आश्वस्त करती टिप्पणी और अनुमोदन केलिए आपकी आभारी हूँ आ० नीरज 'नीर' जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 19, 2014 at 10:38pm

दोहों के भाव आपको पसंद आये आ० जितेन्द्र जी, ये मेरे लिए संतोष का विषय है 

आपका धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 19, 2014 at 10:38pm

दोहावली की सार्थकता को अनुमोदित कर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार आ० राजेश कुमारी जी 

Comment by MAHIMA SHREE on October 19, 2014 at 7:31pm

दार्शनिक भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई प्रेषित है ..बहुत ही सुंदर दोहें आदरणीया प्राची जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 19, 2014 at 12:33pm

आदरणीय सोमेश कुमार जी 

इन दोहों के भावार्थ को अपने शब्दों में आपसे जो मान मिला है उसके लिए नत भाव से आपकी आभारी हूँ 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 18, 2014 at 10:43pm

बहुत सुंदर सनातन भाव रचित दोहे | जिन पर डॉ गोपाल नारायण जी और श्री नीरज कुमार "नीर" जी की टिपण्णी 

गहन समीक्षात्मक आ चुकी है | आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी 

Comment by Neeraj Neer on October 18, 2014 at 9:33am

इन दार्शनिक भावों से संपृक्त उत्कृष्ट दोहों के लिए हार्दिक बधाई। 

योग की परम अवस्था को दर्शाती इन पंक्तियों : 

सूक्ष्म धार ले स्थूल तन, पराश्रव्य हो श्रव्य

गुह्य सहज प्रत्यक्ष हो, सधें नियत मंतव्य  

के क्या कहने, कितनी सुंदरता से इतनी गूढ बात कह दी ॥  

और अद्वैत के सिद्धांत को प्रतिष्ठापित करती इन पंक्तियों के क्या कहने :सूक्ष्म धार ले स्थूल तन, पराश्रव्य हो श्रव्य

गुह्य सहज प्रत्यक्ष हो, सधें नियत मंतव्य ॥

बहुत खूब। बहुत बधाई । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 18, 2014 at 9:20am

बहुत सुंदर भाव.अनुपम दोहावली, आदरणीया डा.प्राची जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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