For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीतिका छंद पर आधारित एक गीत : रे पथिक अविराम चलना..........(डॉ० प्राची)

रे पथिक अविराम चलना पंथ पर तू श्रेय के

बहुगुणित कर कर्मपथ पर तन्तु सद्निर्मेय के

 

मन डिगाते छद्म लोभन जब खड़े हों सामने

दिग्भ्रमित हो चल न देना लोभनों को थामने

दे क्षणिक सुख फाँसते हों भव-भँवर में कर्म जो

मत उलझना! बस समझना! सन्निहित है मर्म जो  

 

तोड़ना मन-आचरण से बंध भंगुर प्रेय के

रे पथिक अविराम चलना पंथ पर तू श्रेय के

 

श्रेष्ठ हो जो मार्ग राही वो सदा ही पथ्य है

हर घड़ी युतिवत निभाना जो मिला कर्तव्य है

राह यह मुश्किल मगर कल्याणकारी सर्वदा

जोड़ राही धैर्यवत नित कर्मफल की सम्पदा

 

गुप्त होते हैं सृजन पल कर्म-फल प्रतिदेय के

रे पथिक अविराम चलना पंथ पर तू श्रेय के

 

जटिल जीवन रागिनी पर शांत अन्तः-स्वर सदा

शांत उर को श्रव्य शाश्वत नाद शुचिकर प्राणदा

दृढ़पदा चित का पथिक पदचिह्न हो केवल सधा

सुप्त प्रज्ञा, मनस व्याकुल, फिर भला क्या सुस्वधा?

 

साध तप से, दीप सारे प्रज्ज्वलित कर ध्येय के

रे पथिक अविराम चलना पंथ पर तू श्रेय के

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1120

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 16, 2015 at 6:40pm

गीत के भावों पर आपके अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० माहेश्वरी कनेरी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 16, 2015 at 6:38pm

आदरणीय सौरभ जी 

इस गीत पर आपकी विषद टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद.

गीतिका छंद पर आधारित इस प्रयोग को आपनसे  उत्तीर्णअंक मिले देख मन हर्षित है. कथ्य तथ्य और शिल्प आपके मापदंडों पर पास होता है तो लेखन के साथ साथ चिंतन के प्रति भी आश्वस्ति बनती है. 

ये मैंने भी गहनता से अनुभव किया है कि कुछ विषय चाह कर भी बहुत सरल भाषा में प्रस्तुत किये ही नहीं जा सकते... ऐसा करने पर उनका प्रभाव व सन्देश की गरिमा दोनों ही प्रभावित होते हैं.  

इस गीत पर आपकी आश्वस्त करती प्रतिक्रया के लिए हृदयतल से धन्यवाद 

सादर 

Comment by Maheshwari Kaneri on July 16, 2014 at 6:43pm

मन डिगाते छद्म लोभन जब खड़े हों सामने

दिग्भ्रमित हो चल न देना लोभनों को थामने

दे क्षणिक सुख फाँसते हों भव-भँवर में कर्म जो

मत उलझना! बस समझना! सन्निहित है मर्म जो ,,,,इस सुन्दर भावपूर्ण  रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया प्राचीजी. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 9:47pm

शास्त्रीय छन्दों की वास्तविक प्रासंगिकता आमजन से सम्बन्धित तथ्यों को साझा करने के क्रम पद्य के विभिन्न प्रारूपों को अपनाने में है, इसे कहा तो खूब जाता है लेकिन इस ओर प्रयास कम ही हो पाते हैं. कारण कई हैं. फिर भी मुख्य कारण यही है कि साहित्य के अन्यान्य मंचों पर छन्दों पर गंभीर कार्य आज कितना हो रहा है इसे सभी जानते हैं. तो फिर इनके अन्य प्रारूपों पर अभ्यास करना कितना दुरूह हो सकता है यह समझने की बात है.
किन्तु, यह भी एक सूचनात्मक तथ्य है, कि नवगीत का वैधानिक प्रारम्भ यही विन्दु है. यानि, विभिन्न छन्दों से किसी चरण या पदांश लिया गया और आजके दैनन्दिन जीवन से बिम्ब साधे गये ! लीजिये, नवगीतों का एक नया दौर प्रारम्भ हो गया.
 
यह तो हुई नवगीतों की बात. लेकिन छन्द विशेष से पद-विधान को लेकर गीतात्मक प्रारूप देना गीतकर्म का पुराना ढंग रहा है.
 
आदरणीया प्राचीजी, इन्हीं विन्दुओं के सापेक्ष गीतिका छन्द का सुन्दर प्रयोग देख कर मन अत्यंत प्रसन्न है ! इस क्रम में, आपकी इस प्रस्तुति को कथ्य और तथ्य दोनों हिसाब से एक उन्नत और सचेत उदाहरण की तरह देख रहा हूँ.

इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रस्तुतीकरण में संप्रेषण और कथ्यात्मकता का अत्यंत सक्षम पहलू उभर कर आया है. चूँकि विषय ही श्रेय तथा प्रेय की परिधि को स्पष्ट करता हुआ है, तो शाब्दिक रूप से रचना तनिक क्लिष्ट लग सकती है. परन्तु यह भी मानने की बात है कि इस विषय को ’चलताऊ’ शब्दों में अभिव्यक्त करना न केवल इस विषय के साथ अन्याय करना होगा, बल्कि तथ्य-संप्रेषण की सटीकता को भी भोथरा करना होगा. पाठकों को शब्द प्रवाह में बहने के लिए प्रयुक्त शब्दों को अंगीकार करना ही होगा.
आदरणीया, इस विन्दु को इस मंच पर मुझसे अधिक और कौन समझ सकता है !
 
इस उन्नत गीत का प्रस्तुतीकरण इस मंच के लिए उपलब्धि है. मैं आपके इस बन्द को विशेष रूप से उद्धृत करना चाहूँगा.
 
मन डिगाते छद्म लोभन जब खड़े हों सामने
दिग्भ्रमित हो चल न देना लोभनों को थामने
दे क्षणिक सुख फाँसते हों भव-भँवर में कर्म जो
मत उलझना! बस समझना! सन्निहित है मर्म जो  
 
तोड़ना मन-आचरण से बंध भंगुर प्रेय के
रे पथिक अविराम चलना पंथ पर तू श्रेय के
 
अंतर-मनस को सचेत करते इस गीत के लिए हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीया प्राचीजी.
शुभ-शुभ
 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2014 at 7:11am

रचना पर आपकी विश्वस्त करती सराहना के लिए धन्यवाद आ० रमेश कुमार चौहान जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2014 at 7:11am

आदरणीय संतलाल करुण जी 

प्रस्तुत गीत को जिस गहनता से आपने हृदयंगम किया और इसके शब्द चयन प्रवाह भाव प्रवणता पर आपने विशेष सराहना की ..वो लेखन कर्मिता के लिए एक पारितोषिक सदृश है 

हृदयतल से आपका आभार 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2014 at 7:07am

गीत के भाव आपको पसंद आये ये मेरे लिए भी संतोष का विषय है 

धन्यवाद आ० केवल प्रसाद जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2014 at 7:07am

गीत की अंतर्धारा व सन्देश पर आपके  अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० गिरिराज भंडारी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2014 at 7:06am

गीत पर आपके उदार स्नेह के लिए धन्यवाद आदरणीया कल्पना रामानी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2014 at 7:03am

आदरणीय डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

प्रस्तुत उद्बोधन पर आपकी सराहना और उत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ

धन्यवाद 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
28 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service