धूप, दीप, नैवेद बिन, आया तेरे द्वार
भाव-शब्द अर्पित करूँ, माता हो स्वीकार
उथला-छिछला ज्ञान यह, दंभ बढ़ाए रोज
कुंठाओं की अग्नि में, भस्म हुआ सब ओज
चलते-चलते हम कहाँ, पहुँच गए हैं आज
ऊसर सी धरती मिली, टूटे-बिखरे साज
मौन सभी संवाद हैं, शंकाएँ वाचाल
काई से भरने लगा, संबंधों का ताल
नयनों के संवाद पर, बढ़ा ह्रदय का नाद
अधरों पर अंकित हुआ, अधरों का अनुनाद
तेरे-मेरे प्रेम का, अजब रहा संयोग
नयनों ने गाथा रची, नयनन योग-वियोग
जटिल सभी अभिप्राय हैं, क्लिष्ट हुए सब शब्द
जड़ होती संवेदना, अवमूल्यन प्रत्यब्द
लहर-लहर हर भाव है, भँवर हुआ अब दंभ
विह्वल सा मन ढूँढता, रज-कण में वैदंभ
Comment
बहुत सुन्दर दोहे सभी एक से बढ़ के एक शिल्प पर सधे हुए.बहुत-बहुत बधाई इस दोहावली पर ब्रिजेश जी |
सुंदर दोहे रचे है आप ने बधाई आपको /सादर
आदरणीय जितेन्द्र जी, आपका हार्दिक आभार!
आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!
आप द्वारा इंगित चरण मुझे तो सही लगा. फिर भी, कुछ कमी होगी ऐसा मैं मानता हूँ. कृपया संशोधन के लिए मार्गदर्शन करें.
सभी दोहे बहुत सुंदर लगे आदरणीय बृजेश जी , बहुत कुछ कह जाते इन दोहों पर आपको हार्दिक बधाई
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