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ग़ज़ल- तुझे अपना किये बग़ैर (ज़ैफ़)

(221 2121 1221 212/1)

जब कर लिया है इश्क़ भी, सोचा किये बग़ैर।
मैं दम न लूँगा अब तुझे अपना किये बग़ैर।

ये दिल की लेन-देन है, नुकसान हो गया तो?
ये सौदा मत ही करना, भरोसा किये बग़ैर।

यूँ काम कीजिये कि सलामत रहे अना* भी,
हर काम कीजे अपने को 'छोटा' किये बग़ैर।
(*ego)

उन चाहतों का घोंट दे ऐ दिल गला, कि जिनका
चलता नहीं है काम, तमाशा किये बग़ैर।

मजबूरियाँ अजब हैं तवायफ़ की, क्या करे वो?
खाना नहीं हो पाता है धंधा किये बग़ैर।

चुप रहता क्यूँ भला कि बड़ा दर्द झेलता था?
मेरा क़लम न चल सका, चीखा किये बग़ैर।

कोई तो अश्क पोछ ले मेरे भी, या ख़ुदा!
कोई तो दिन गुज़ार लूँ, गरया* किये बग़ैर।
(*crying)

कुछ कहता तो पता नहीं क्या हश्र होता 'ज़ैफ़'?
याँ तो ज़बान कट गई बोला किये बग़ैर।

© (मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Zaif on June 13, 2014 at 6:44pm
आप सभी के सुझावों के लिए बहुत धन्यवाद! :)
Comment by Zid on June 11, 2014 at 8:32pm

यह लब्ज़ -ऐ -बयां से तुम भी बाज़ न आये ज़िद
मरता नहीं है यह भी आरज़ू बेतहाशा किये बगैर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 3:13pm

उर्दू भाषा की चाशनी और शायर का खयाल .. ग़ज़ल उम्दा हुई है.

दाद कुबूल कीजिये, भाई ज़ैफ़

एक बात : मिसरे के आखिर में किसी शब्द की एक बढ़ी हुई मात्रा ही स्वीकार्य होती है. अलग से कोई शब्द मान्य या स्वीकार्य नहीं होता. न ही यहाँ किसी ग़ाफ़ को गिराया ही जा सकता है.

लेकिन ऐसा आपके कई मिसरों में हुआ है.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 12:08pm

यूँ काम कीजिये कि सलामत रहे अना* भी,
हर काम कीजे अपने को 'छोटा' किये बग़ैर।..badhiya sandesh

उन चाहतों का घोंट दे ऐ दिल गला, कि जिनका
चलता नहीं है काम, तमाशा किये बग़ैर।.. इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by बृजेश नीरज on June 6, 2014 at 10:08pm

अच्छा प्रयास है! आपको बहुत बधाई!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2014 at 11:39am

प्रिय

उन चाहतो का घोंट दे ऐ दिल गला ----बहुत अच्छा शेर है i आप राजेश कुमारी जी की सलाह पर भी गौर करें और निराश बिलकुल न हों भाव्नाओ पर आपकी पकड़ अच्छी है i बस थोडा  शब्द संयोजन भी हो जाए तो अति उत्तम्र रहेगा i  

Comment by coontee mukerji on June 4, 2014 at 6:15pm

चुप रहता क्यूँ भला कि बड़ा दर्द झेलता था?
मेरा क़लम न चल सका, चीखा किये बग़ैर।......क्या बात है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 4, 2014 at 5:42pm

यमित पुनेठा जैफ जी आपकी ग़ज़ल पहली बार पढ़ रही हूँ ....मतले पर ही अटक गई हूँ 

जब कर लिया है इश्क़ भी, सोचा किये बग़ैर।------सोचे बगैर या सोचा किये बगैर ???

मेरा क़लम न चल सका, चीखा किये बग़ैर।-----चीखे बगैर या चीखा किये बगैर ??

याँ तो ज़बान कट गई बोला किये बग़ैर।-----बोले बगैर या बोला किये बगैर ??

मेरी हिंदी में तो ये वाक्य फिट नहीं बैठ रहे ...आप ही बताइये क्या सही है ?

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