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ग़ज़ल - बेख़ुदी की बात कर

(2212 2212)

या बेख़ुदी की बात कर।
या दिल्लगी की बात कर। 

तू ये बता क्या हाल है?
अपनी ख़ुशी की बात कर। 

अब उस सदी की बात क्यूँ?
तू इस सदी की बात कर। 

जो याद करता हो तुझे,
तू भी उसी की बात कर। 

या तो ख़ुदा का नाम ले,
या बंदगी की बात कर। 

जो कान में रस घोल दे,
उस बांसुरी की बात कर। 

है क्या रखा इस जंग में?
कुछ आशिक़ी की बात कर। 

जो भेंट ज्वाला की चढ़ी,
उस लाडली की बात कर।

क्या ख़ुदकुशी से हल मिला?
अब ज़िंदगी की बात कर।

ताले ज़बां के खोल दे,
मत बेबसी की बात कर।

तू ले मज़ा इस रात का,
बस चाँदनी की बात कर।

तू-मैं, ख़ुदा तो हैं नहीं,
चल आदमी की बात कर!

जिसपे फ़िदा है 'ज़ैफ़' तू,
उस सांवरी की बात कर।

"मौलिक व अप्रकाशित"©

Views: 776

Comment

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Comment by Zaif on July 17, 2014 at 4:46pm
आप सभी आ. जनों का बेहद बेहद शुक्रिया।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2014 at 4:32am

ज़ैफ़ साहब, दिलखुश कर दिया आपने.  छोटे को को साधना हमेशा से कठिन हुआ करता है.

दिल से दाद कुबूल करें, भाईजी.

Comment by annapurna bajpai on June 3, 2014 at 11:06am

सुंदर गजल , वाह !! बधाई आपको । 

Comment by बृजेश नीरज on June 2, 2014 at 12:12pm

सुन्दर ग़ज़ल! आपको बधाई!

Comment by Neeraj Neer on June 1, 2014 at 11:50am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 30, 2014 at 2:47pm

आदरणीय जैफ जी ..छोटी बहर में लिखी इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Meena Pathak on May 29, 2014 at 11:26am
behatreen .... saadar badhai
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 29, 2014 at 11:00am

कमाल की गजल हुई आदरणीय यमित जी

क्या ख़ुदकुशी से हल मिला? 
अब ज़िंदगी की बात कर। ...................बहुत सुंदर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 9:48am

जनाब ज़ैफ़ साहब छोटी बह्र में कमाल की ग़ज़ल कही है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by नादिर ख़ान on May 28, 2014 at 8:32pm

वाह वाह वाह क्या खूब कहा, छोटी बहर में बड़ी - बड़ी बात कह गए आदरणीय यमित जी बहुत खूब....

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