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क्यूँ न हम जुल्फ हुये सोचकर ये खलता है

२१२२ ११२२ १२१२ २२
इश्क की मौज में जब दिल में कुछ उछलता है
चांदनी रात में शोलों सा तन ये जलता है

राहे मंजिल पे यूं तो गुल तमाम थे लेकिन
आँख जब से लड़ी तन बर्फ सा पिघलता है

बंदिशें तोड़ के कह दे तू इस जमाने से
जलने वाला तो बात बात पे ही जलता है

चूम लेती हैं हसीं रुख को जब कभी जुल्फें
क्यूँ न हम जुल्फ हुये सोचकर ये खलता है

जुल्फ की छांव का अहसास तो किया होता
घर के साए से यकीनन ये दिल बहलता है

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 9, 2014 at 9:46pm

प्रिय डॉ आशुतोष जी प्रेम को छलकाती हुयी सुन्दर गजल ..सुन्दर शब्द बन्ध
भमर ५

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 1:44pm

धन्यवाद गोपाल सर ..इस नयी जानकारी के लिए सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 11:52am

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ...बस आपका स्नेह यूं  ही मिलता रहे इस कामना  के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 11:42am

आदरणीया अनुपमा जी ..रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिपा के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 11:41am

आदरणीया मीना जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 11:40am

आदरणीया कुंती जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद saadar 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 4, 2014 at 11:39am

मित्र, जहा तक मेरी जानकारी है हम-जुल्फ  साढ़ू के रिश्ते को कहते हैं  i

सादर i

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 11:38am

आदरणीय अभिनव जी ..आपके उत्साहवर्धक स्नेहिल शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 11:37am

आदरणीय जीतेन्द्र जी ..रचना पर आपकी उत्साहवर्ध प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 11:34am

आदरनीय शिज्जू जी ..मेरी रचना पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

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