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वक़्त....(लघु-कथा)

 "  सच!  बहुत ही अच्छे इंसान थे  बल्लू भैया !!    क्षेत्रीय बैंक के अध्यक्ष पद पर  होते हुए उन्होंने सभी की बहुत मदद की , जो कोई भी पहचान वाला आकर अपनी समस्या बतलाता , उसे  कैसे न कैसे बैंक से आर्थिक मदद  दिलवा ही देते थे.  आज कई लोग तो उन्हीं की वजह से आबाद हुए बैठे है"

 

" हाँ भाई..!  उनकी माँ के  मर जाने के बाद आज उनका  अपना कोई भी तो नहीं.  देखा न !  पिछले वर्ष जब उनकी माँ की मृत्यु हुई थी तो बल्लू भैया के साथ-साथ सैकड़ों लोग सिर मुंडवाने को आगे आ गये और कहने लगे कि यह हम सबकी भी माँ थी,  लेकिन आज बल्लू भैया की मृत्यु पर ......."

 

   जितेन्द्र 'गीत'

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 7, 2014 at 10:46pm

आपका ह्रदय से आभार आदरणीय श्याम नारायण जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 7, 2014 at 10:45pm

वर्तमान में हर इंसान अवसरवादी हो चूका है , इंसानियत तो ढूंढे से नही मिलती. रचना पर आपकी उपस्थिति से बड़ी प्रसन्नता हुई आदरणीय भुवन जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 7, 2014 at 10:39pm

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 7, 2014 at 10:38pm

स्नेही गीत जी 

सादर 

ये ही जीवन का सत्य है जिसे बखूबी आपने कथा के माध्यम से चित्रित किया. वाह रे दुनिया. 

बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 7, 2014 at 9:05pm

मैं क्या कहूँ भाई जितेन्द्र जी इस कथा के भाव पर निःशब्द हूँ

Comment by coontee mukerji on May 7, 2014 at 5:59pm

क्योंकि वह उसकी माँ थी.....अच्छी रचना है.. हार्दिक बधाई.

Comment by savitamishra on May 7, 2014 at 4:49pm

बहुत सुन्दर ......इंसानियत बस स्वार्थ में जागती है

Comment by Shyam Narain Verma on May 7, 2014 at 3:11pm
बहुत बढ़िया कहानी , हार्दिक बधाई आपको
Comment by भुवन निस्तेज on May 7, 2014 at 1:36pm

इंसानियत चेहरा किस हद तक बदसूरत हो सकता है ये लघुकथा यह बताने में सक्षम है..

आदरणीय जीतेंद्र 'गीत' बहुत खूब....

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2014 at 12:16pm

नाम है लघुकथा पर लिए है बड़ी व्यथा.....हार्दिक बधाई इस लघुकथा के लिए आदरणीय भाई जितेंद्रा जी .

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