For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“मालिक..!  मुझे एक माह की छुट्टी चाहिए थी, बहुत जरुरी काम आन पड़ा है.. या हो सके तो एक नये नौकर की जुगाड़ भी कर के रखना.हुआ तो लौटकर काम पर  नहीं भी  आऊँ ” रोज अपने कान के ऊपर से बीड़ी निकाल के पीने वाले रामू ने,  आज सिगरेट का कस खींचते हुए कहा

“अरे भाई..यहाँ  पूरा काम फैला पड़ा है और तू है कि एक माह की छुट्टी की बात कर रहा है,  ऐसा क्या काम आ गया ..?  कि तू काम भी छोड़ सकता है “  गजाधर ने बड़े परेशान होकर पूछा

“ वो काम यह  है कि मेरी ससुराल वाला गाँव, बाँध की डूब में आने वाला था. तो पिछले साल मैं भी वहां एक झोंपड़ी  बना आया था. जिसका मुआवजा मिल सकता है. अब सरकारी काम-काज है समय का क्या ठिकाना कितना लग जाय..? ”  अपनी बात कहते हुए   रामू ने आधी सिगरेट बुझाकर अपने कान के ऊपर दबा ली थी

   जितेन्द्र 'गीत'

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

Views: 755

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2014 at 10:39pm

आपकी उत्साहवर्धक सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय भुवन जी

सादर!

Comment by भुवन निस्तेज on May 16, 2014 at 12:10am

लघुकथा में बृहत् व्यथा, क्या बात है, बधाई स्वीकार करें..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 15, 2014 at 11:27pm

आपका मार्गदर्शन शिरोधार्य है आदरणीय सौरभ जी, आपकी कही बातों का भविष्य में हमेशा ध्यान रखूँगा. अपना स्नेह और मार्गदर्शन बनाये रखियेगा

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2014 at 7:33pm

भाई जितेन्द्रजी,
लघुकथाओं पर आपकी कलम (?) अच्छी चलने लगी है. इस प्रस्तुति पर हुई चर्चा (प्रतिक्रियाएँ) इस बात को रेखांकित करती हैं कि आपने रचनाओं में वैचारिक विन्दुओं के महत्त्व को समझ लिया है. एक रचनाकार के तौर पर यह अच्छी बात है. इससे लेखक और पाठक के बीच संवाद और विमर्श की स्थिति बनती है.
हाँ, यह अवश्य है कि लेखक को संवाद और विमर्श की लत नहीं लगनी चाहिये, कारण कि अनाश्यक दुराग्रह जन्म लेता है. ऐसा कोई दुराग्रह सदा ही कुतर्क एवं मनभिन्नता कारण होता है. ये साहित्य के विन्दुओं को नहीं, साहित्य में मठाधीशी को स्थापित करने का कारण हैं. ऐसी स्थिति सदा ही खतरनाक स्थिति हुआ करती है.

इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ.
शुभ-शुभ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2014 at 10:09am

आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय सत्यनारायण जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Satyanarayan Singh on May 9, 2014 at 4:20pm

आ. जीतेन्द्र जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 2, 2014 at 11:08pm

आपका कहना  सही है आदरणीय चंद्रशेखर जी, इंसान को अगर अधिक राहतें या सुविधाएँ दी जाएँ तो उसे सहानुभूति की आदत भी पड़ जाती है.

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on May 2, 2014 at 10:09am

आदरणीय जितेन्द्र जी,

बहुत खूब!!

हमारे तंत्र ने गरीबों को सशक्त नहीं किया, सिर्फ खैरात दी  है। इससे वो भी निकम्मे, निराशावादी और कपटी हुए हैं।

आपूर्ति उपागम और उसके बाद लचर पुनर्स्थापन और शिकायत निवारण तंत्र के चलते अक्सर ऐसे प्रोजेक्टस में असली लाभार्थी वंचित रह जाते हैं और कुछ चंट लोग ही फ़ायेदा ले पाते हैं।

आपको एक विशिष्ट प्रवृत्ति उजागर करने के लिए बधाई। 

अच्छी लघुकथाएं पढवाते रहें ऐसे ही। 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 1, 2014 at 9:45pm

बेईमानी का पैसा फलता है या  नही ? इसका मुझे पता नही है  :)))
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय अखिलेश ज़ी , स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखिएगा
सादर !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 1, 2014 at 9:40pm

 आदरणीय बृजेश ज़ी , क्षमा चाहुंगा जैसा कि मैने पहले ही आदरनिया राजेश जी कि प्रतिक्रिया के आभार मे कह चुका कि यहॉँ इस लघुकथा मे मैने क़िसी  भी वर्ग को निशाना नही बनाया है ,केवल इन्सान कि पृवत्ति का चित्रं खींचने की  कोशिश की है। रही बात अभिजात्य वर्ग कि तो वो भी मुआवजा या किसी भी प्रकार की राहत लेने से नही चूकता। जैसे की हमारे प्रदेश में मुख्यमंत्री योजना के अन्तर्गत आधे खर्च पर गरीब बुजुर्गो को तीर्थ  की व्यवस्था की गई है जिसका लाभ सिर्फ़ बड़े तबके के लोग ही  उठा रहे है ,  और तो और जाति प्रमाण -पत्र ,आमदनी प्रमाण -पत्र , मुफ्त चिकित्सा हेतु , सस्ते राशन हेतु  जितनी भी राहतें जो गरीबों को मिलना चाहिए उनके साथ-साथ मध्यम वर्ग व ऊँचे वर्ग के लोग भी मजा कर रहे है।

आपके मार्गदर्शन के लिये मै आपका ह्रदय से आभारी हूँ , अपना स्नेह व मार्गदर्शन बनाये रखियेगा
सादर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service