2122 1212 22
कौन जीता है कौन हारा है
मौत ने कर दिया इशारा है
कल तलक था बुलंदियो पर वो
आज क़िस्मत ने उसको मारा है
मेरी हिम्मत न टूटने देना
मेरे मौला तेरा सहारा है
माँग लो जो भी माँगना तुमको
सामने टूटता वो तारा है
बेवफ़ाई से हो गया पागल
प्यार को कब मिला किनारा है
छोड़ दो मारते उसे क्यों हो
मुफ़लिसी, वक़्त का वो मारा है
खा के देखूं तो शादी का लड्डू
सोचता बस यही कुँवारा है
लूला, लंगड़ा भले अपाहिज हो
माँ को बेटा सदा दुलारा है
रौशनी कम हुई 'चिराग' की अब
धुंधला-धुंधला सा बस नज़ारा है
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
शुक्रिया सत्य नारायण जी
आदरणीय जितेंद्र जी
शुक्रिया आपका
बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय मुकेश जी
माँग लो जो भी माँगना तुमको
सामने टूटता वो तारा है..................बहुत सुंदर ख्याल. दिली बधाई आपको
आदरणीय सिज़्जु जी
हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया
//कल तलक था बुलंदियो पर वो
आज क़िस्मत ने उसको मारा है//
आदरणीय मुकेश भाई बहुत खूब वाह दिली दाद कुबूल करें
आदरणीया राजेश कुमारी जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया आपका
खा के देखूं तो शादी का लड्डू
सोचता बस यही कुँवारा है------जरूर खाओ सोचना क्या ...वाह्ह
लूला, लंगड़ा भले अपाहिज हो
माँ को बेटा सदा दुलारा है-----जबरदस्त भाव ...एक दम सच
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई चिराग जी सभी शेर सुन्दर बने हैं ...दिली दाद कबूलिये .
आदरणीय रमेश जी
शुक्रिया आपका
रौशनी कम हुई 'चिराग' की अब
धुंधला-धुंधला सा बस नज़ारा है-------------बढि़या
सफल प्रयास के बधाई आदरणीय मुकेशजी
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