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बाज़ारे-इश्क़ सज गया पूरे उफान पर
शीला का नाम चढ़ गया सबकी ज़बान पर
धंधे की बात कीजिए कच्ची कली भी है
क्या कुछ नहीं मिलेगा मेरी इस दुकान पर
मुँह में दबाए पान मियाँ किस तलाश में
रंगीनियाँ भुला भी दो उम्र अब ढलान पर
कूंचे में आए हुस्न का बाज़ार देखने
चोरी से देखते है सभी इक निशान पर
रोज़ आते हैं दीवाने यहाँ गम को बाँटने
करते है वाह-वाह वो घुंघरू की तान पर
घायल हो जिसके प्यार में उसको कहाँ ख़याल
ध्यान अपना अब लगाओ ज़रा तुम अज़ान पर
उल्फत का खेल संग मेरे खेलकर 'चिराग'
ऐसा दिया है ज़हर की बन आई जान पर
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय वैद्यनाथ सारथी जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया.
आदरणीय राम शिरोमणि जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया.
आदरणीय बृजेश जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया.
आदरणीया सविता जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया. आपकी साहित्यिक नज़र को मेरा सलाम. दिल से दुआएँ आपके लिए.
आदरणीय गुमनाम जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया.
आदरणीय अरुण जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया. जी, बेहर टाइप करने मे गड़बड़ी हो गयी थी.. जिसे मैने उसी समय सही कर दिया था.
उस मिसरे पर नादिर साहेब ने भी सवाल उठाया था..जिसका जवाब मैने दे दिया था..
बहुत बढ़िया
रोज़ आते हैं दीवाने यहाँ गम को बाँटने
करते है वाह-वाह वो घुंघरू की तान पर...खूब
सुन्दर प्रस्तुति .......... हार्दिक बधाई आपको
अच्छा प्रयास है! आपको बधाई!
बहुत खूब
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