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मौसमी दोहे

मौसम हुआ सुहावना ,उपवन उपवन नूर
ग्लोबल वार्मिंग का असर अब गर्मी है दूर |


समझो प्यारे ध्यान से मौसमी यह बिसात
सुबह होती धूप अगर शाम हुई बरसात |


पारा बढ़ता जा रहा लेकिन बढ़ी न प्यास
फागुन के अब मास में श्रावण का अहसास |


फागुन बीता ओढ़ के रजाई और शाल
वोटर का पारा बढ़ा देख सियासी चाल |


मौसम का बदलाव ये कर ना दे बेहाल
सेहत के खजाने को रखना सब संभाल |

.....................................................

...........मौलिक व अप्रकाशित...............

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 2:49am

आदरणीया, आपको दोहे कहते एक अरसा हो गया है. आपका प्रयास अच्छा भी लगता है. लेकिन मेरा यह भी कहना है कि दोहा छंद पर प्रस्तुत हुआ आलेख काश आपने पढ़ लिया होता. अन्यथा, निम्नखित शब्द-संयोजन अपने-अपने चरणों में न होते -
मौसमी यह बिसात -- सम चरण में
रजाई और शाल - सम चरण में
सेहत के खजाने को - विषम चरण में

बहरहाल, इस प्रस्तुति पर आपको मेरी हार्दिक बधाइयाँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2014 at 6:29pm

आदरणीय सरिता जी , बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं आपने , आपको दिली बधाइयाँ ॥ पमिय्पं के विषय मे आ. गणेश भाई , आदरणीया कल्पना जी ने जो सलाह दी है उसपे ज़रूर ध्यान दीजियेगा ॥

Comment by Sarita Bhatia on March 26, 2014 at 10:25am

आदरणीया दी बहुत खूब मुझे भी इसमें ज्यादा बाधा लग रही थी उन दोहों की बजाय 

Comment by Sarita Bhatia on March 26, 2014 at 10:24am

आदरणीय आशुतोष जी हार्दिक आभार 

Comment by कल्पना रामानी on March 25, 2014 at 10:13pm

सरिता जी सब दोहे अच्छे लगे, बहुत बहुत बधाई। गलतियों की ओर आ॰ गणेश जी इशारा कर दिया है, मुझे इस दोहे में भी लय कुछ बाधित लग रही है।

समझो प्यारे ध्यान से मौसमी यह बिसात
सुबह होती धूप अगर शाम हुई बरसात |

इसे इस तरह कहें तो ....

समझो प्यारे ध्यान से, यह मौसमी बिसात
धूप अगर होती सुबह, शाम हुई बरसात |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2014 at 5:37pm

आदरणीया सरिता जी ..सभी दोहे मन को छू लेने वाले हैं ..मेरी तरफ से तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Sarita Bhatia on March 25, 2014 at 10:06am

आदरणीय बागी जी हार्दिक आभार आपके अमूल्य मार्गदर्शन के लिए 

इन्हें इस तरह सुधारा जा सकता है कृपया मार्गदर्शन करें 

फागुन बीता ओढ़ के रजाई संग शाल /फागुन बीता पहन के गर्म वस्त्र औ शाल 
वोटर का पारा चढ़ा देख सियासी चाल |

मौसम का बदलाव ये कर ना दे बेहाल 
खजाना सब सेहत का रखो जरा संभाल |

Comment by Sarita Bhatia on March 25, 2014 at 9:57am

आदरणीय शिज्जू जी हार्दिक आभार मार्गदर्शन के लिए 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 24, 2014 at 10:14pm

सभी दोहे अच्छे लगें, इन दो दोहो पर ध्यान चाहूँगा, जहाँ प्रवाह बाधित है,

फागुन बीता ओढ़ के रजाई और शाल
वोटर का पारा बढ़ा देख सियासी चाल |

मौसम का बदलाव ये कर ना दे बेहाल
सेहत के खजाने को रखना सब संभाल |

बधाई प्रेषित है इस प्रस्तुति पर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 24, 2014 at 9:24pm

आदरणीया सरिता जी मौसम का बहुत बढ़िया चित्रण आपने किया है बहुत बहुत बधाई।
शिल्प की बात कहूँ तो कहीं कहीं प्रवाह बाधित है ज़रा ग़ौर फरमा लें।

कृपया ध्यान दे...

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