For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सौतेली माँ

जब मैं छोटा था

भूख से तड़पता था

लेकिन अब –

वो हर वक्त पूछती है

बेटा खाना खाओगे !

.            

पुजारिन

करबध्द खड़ी है

न जाने कब से ?

मीरा की तरह

और , कन्हैया –

किसी राधा के साथ

रास रचाने

निकल गए हैं ।

  --- मौलिक एवं अप्रकाशित ---

Views: 405

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by S. C. Brahmachari on March 30, 2014 at 8:54pm
श्रद्धेय भाई सौरभ पाण्डेय जी ,
रचना पर प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार !
Comment by S. C. Brahmachari on March 30, 2014 at 8:48pm
डॉ0 आशुतोष मिश्रा जी ,
क्षणिकाओं के सागर मंथन एवं प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 3:25am

आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2014 at 5:21pm

आदरणीय ब्रह्मचारी जी ..गागर में सागर की तरह है आपकी ये रचना ..इन क्षदिकाओं के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर प्रणाम के साथ

Comment by S. C. Brahmachari on March 25, 2014 at 2:53pm
रचना की प्रशंसा हेतु हार्दिक आभार श्री जीतेंद्र जी !
Comment by S. C. Brahmachari on March 25, 2014 at 2:50pm
श्री गिरिराज भण्डारी जी ,
क्षणिकाये अच्छी लगी , आपका हार्दिक आभार !
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 24, 2014 at 10:40am

बहुत सुंदर रचना आदरणीय ब्रह्मचारी जी, बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 24, 2014 at 10:26am

आदरणीय ब्रह्मचारी भाई ,  क्षणिकाये बहुत सुन्दर लगीं ,  हार्दिक बधाई ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
12 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
13 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service