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आया लो फागुन का मौसम

     आया लो फागुन का मौसम

 

आया लो फागुन का मौसम, मुझको पागल हो जाने दो !

वासंती  बयार ने  तेरे -

कोमल कुंतल को बिखराए,

गजब ढा रही तेरी बिंदिया-

गालों पर फागुन छा जाये ।

तेरा बदन गुलाल हुआ , अपनी ज़ुल्फों मे खो जाने दो

आया लो फागुन का मौसम, मुझको पागल हो जाने दो !

फागुन के मौसम मे तुम पर

फूलों की  बरसात  हुयी  है,

अंग अंग फागुनी हुआ ,और –

कामदेव  की  दुआ हुयी  है।

कैसे संयम करूँ प्रिये !  अब जो होता है , हो जाने दो-

आया लो फागुन का मौसम, मुझको पागल हो जाने दो !

पल्लू से मुखड़े को ढँक  लो

आज न  मै  तुमको छोड़ुंगा,

तुम  भागोगी  जहां जहां भी –

पीछे - पीछे   मैं   दौडुंगा ।

होली मे थक कर  चूर हुआ, अपनी बाहों मे सो जाने दो

आया लो फागुन का मौसम, मुझको पागल हो जाने दो !

       --------  मौलिक और अप्रकाशित ----------

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Comment

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Comment by S. C. Brahmachari on April 2, 2014 at 9:48pm
हार्दिक आभार डॉ0 प्राची जी । समय मिले तो व्याकरणिक त्रुटियों पर इशारा कर सकें । एक अन्य रचना - सखि रि ! फागुन .... पर आपकी प्रतिक्रिया वांछित है ....सादर ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2014 at 5:33pm

फाल्गुल के असर पर सुन्दर शृंगारिक रचना हुई है आ० ब्रह्मचारी जी 

कहीं कहीं व्याकरणिक त्रुटियाँ दिख रही हैं उन पर अवश्य ही गौर करें 

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

सादर.

Comment by S. C. Brahmachari on March 25, 2014 at 2:46pm

फागुनी रचना की बधाई के लिए हार्दिक आभार श्री जितेंद्र `गीत` जी ! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 22, 2014 at 8:15am

बहुत सुंदर,भावपूर्ण रचना बधाई स्वीकारें आदरणीय ब्रह्मचारी जी

कृपया ध्यान दे...

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