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गुल के बदले में मुझे बस खारों की माला मिली

२१२२        २१२२       २२२२     २१२

ला ल ला ला    ला ल ला ला   ला ला ला ला    ला ल ला 

भेदने जब तम फलक का रवि आमादा हो गया

चाँद पीकर चांदनी अपनी ही नभ में खो गया 

हाथ हम रखते रहे जलते अंगारों पर यूं ही 

एक फरिस्ता जिन्दगी में ख्वाबे गुल ही बो गया 

बज्म में वो गीत गाये झूमे पीकर मस्त हो 

और नन्हा लाल घर पे रोके भूखा सो गया 

घिर के नफरत में जहाँ की सूझा जब कुछ भी नहीं 

चौखटों पे मंदिरों की नन्हा बचपन रो गया 

कोठरी में जब गए काजल की काले हो गए

पर मेरा ईमान या रब  सारी कालिख धो गया 

गुल के बदले में मुझे बस खारों की माला मिली 

पर खुदा माला में मेरी चंपा जूही पो गया 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2014 at 5:28am

भाई आशुतोष जी लाजवाब गजल कही .

इस शेर के लिए खाश बधाई

बज्म में वो गीत गाये झूमे पीकर मस्त हो 

और नन्हा लाल घर पे रोके भूखा सो गया

Comment by coontee mukerji on February 6, 2014 at 10:17pm

कोठरी में जब गए काजल की काले हो गए

पर मेरा ईमान या रब  सारी कालिख धो गया .....बहुत सुंदर.

कृपया ध्यान दे...

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