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हसीन सपने कभी घर भी जला देते हैं

ल ला ल ला      ला ल ला ला   ल ल ला ला   ला ला 

शबाब फूलों का शबनम में मिला देते हैं 

शराब यूं ही हसी रोज बना देते हैं

दुआएं करते हैं हम जब भी अमन की खातिर

कबूतरों को भी हाथों से उड़ा देते हैं 

कभी जो आया हमें याद सुहाना बचपन

हँसी घरोंदा ही बालू पे बना देते हैं 

हुए न जब भी चरागा हैं मयस्सर हमको 

चरागे दिल को यूं ही रोज जला देते हैं 

समझ रहे हैं फकीरों को भिखारी या रब 

फ़कीर खुद ही जिन्हें रोज दुआ देते हैं 

हँसी चमन में है ये कैसी उदासी यारों 

चलो गुलों से चमन आज सजा देते हैं 

यकीन होता तो है यार मगर मुश्किल से 

हसीन सपने कभी घर भी जला देते हैं 

उमर गुजारी थी ऐ आशु सहारे जिनके 

उन्ही गुलों में छिपे खार दगा देते हैं 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 5, 2014 at 9:48am

दुआएं करते हैं हम जब भी अमन की खातिर

कबूतरों को भी हाथों से उड़ा देते हैं...........बहुत खूब............

Comment by coontee mukerji on January 31, 2014 at 9:02pm

समझ रहे हैं फकीरों को भिखारी या रब 

फ़कीर खुद ही जिन्हें रोज दुआ देते हैं .......बहुत खूब...


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Comment by Dr.Prachi Singh on January 31, 2014 at 8:25pm

कभी जो आया हमें याद सुहाना बचपन

हँसी घरोंदा ही बालू पे बना देते हैं 

यकीन होता तो है यार मगर मुश्किल से 

हसीन सपने कभी घर भी जला देते हैं 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है ..ये दो शेर बहुत बहुत पसंद आये 

हार्दिक बधाई 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 31, 2014 at 4:25pm

aआदरणीय पवन जी, ब्रिजेश जी जीतेन्द्र जी ..आप सभी के उत्साहवर्धन से ही लिखने की सतत प्रेरणा मिलती है ..आप सभी का स्नेह बस यूं ही मिलता रहे  इसी  अभिलाषा के साथ 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 31, 2014 at 10:01am

यकीन होता तो है यार मगर मुश्किल से 

हसीन सपने कभी घर भी जला देते हैं .............यह शेर खास पसंद आया

दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय डा. आशुतोष जी

Comment by बृजेश नीरज on January 30, 2014 at 8:14pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by pawan amba on January 30, 2014 at 1:24pm

कभी जो आया हमें याद सुहाना बचपन

हँसी घरोंदा ही बालू पे बना देते हैं ...बहुत सुन्दर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 30, 2014 at 10:32am

आदरणीया  राजेश जी ..आपके मार्गदर्शन के लिए तहे दिल धन्यवाद ..आपके मार्गदर्शन के अनुरूप संशोधन कर लूँगा ..बस यूं ही स्नेह बनाए रखिये ..सादर प्रणाम के साथ .


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Comment by rajesh kumari on January 29, 2014 at 7:55pm

कभी जो आया हमको याद सुहाना बचपन----इसको यदि ऐसे लिखें तो वज्न सही हो जाएगा ---कभी जो आया हमे याद सुहाना बचपन 

सभी शेर काबिले तारीफ हैं दिली दाद कबूलें आदरणीय  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 29, 2014 at 5:01pm

आदरणीया मीना जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दी धन्यवाद ..सादर 

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