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गंगा जमुनी तहज़ीब है बसंत

गंगा जमुनी तहज़ीब है बसंत

पलकों की छांव में आकर जो खामोश हुये बैंठे हैं ।

दिल की चौखट पर हजारों सवालात लिए बैंठे हैं ।

पीले फूलों की तरह हर तरफ खिलता रहे बसंत,

बासन्ती परिधान में इश्क के जज़्बात लिए बैंठे हैं ।

प्यार, मोहब्बत, इश्क चाहे जिस नाम से पुकारो,

सूर और नज़ीर के हम खयालात लिए बैंठे हैं ।

सरसों के पुष्प से गुलजार है खेत और खलिहान,

कृषकों की खुशियों के हम पारिजात लिए बैंठे हैं ।

हम भी बना देते मोहब्बत का दूसरा ताजमहल,

पर शाहजहाँ द्वारा कटवाए हुये हाथ लिए बैंठे हैं ।

इस बासन्ती मौसम में तन - मन है प्रफुल्लित,

गंगा जमुनी तहजीव की सौगात लिए बैंठे हैं ।

                                        

डॉ हृदेश चौधरी

महासचिव

आराधना संस्था

नोट: यह रचना मौलिक एवं अप्रकाशित है ।

 

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Comment by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 2:40pm

सुन्दर परस्तुति आदरणीया हार्दिक बधाई आपको//////////   सादर


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 6, 2014 at 12:57pm

बहुत सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई.

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 6, 2014 at 11:10am

प्यार, मोहब्बत, इश्क चाहे जिस नाम से पुकारो,

सूर और नज़ीर के हम खयालात लिए बैंठे हैं ।-----------------------बेहतरीन

बधाई बधाई

Comment by annapurna bajpai on February 6, 2014 at 1:36am

हम भी बना देते मोहब्बत का दूसरा ताजमहल,                                                           

पर शाहजहाँ द्वारा कटवाए हुये हाथ लिए बैंठे हैं । ..............सुंदर गजल बधाई आ0 हृदेश जी ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 4, 2014 at 11:00pm

बसंत ऋतु पर बहुत सुंदर प्रस्तुति, बधाई स्वीकारें आदरणीया हृदेश जी

Comment by coontee mukerji on February 4, 2014 at 9:51pm

बहुत सुंदर रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई..सादर.

कृपया ध्यान दे...

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