For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

राज आप का आप पर, पूछ रहे है लोग 

नेताजी क्या आप ने,किया उचित उपयोग ?     

किया उचित उपयोग,लगा क्या जन को ऐसा

जनता करती आस, दिया क्या शासन वैसा.

होती है पहिचान, भला करे जब आम का 

जन का हो कल्याण, तभी है राज आप का |

 (2) 

सुरसा से ये फैलते, प्रचलित बहुत रिवाज

जीना कुंठित कर रहे, छोड़ न पाय समाज |  

छोड़ न पाय समाज, कर्ज में निर्धन डूबे

खिलावे म्रत्यु भोज, प्रतिष्ठा के मनसूबे

स्वार्थ के वशीभूत, भोज का बाँटे पुरसा      

अंध विश्वास मान बढाते जैसे सुरसा ||

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

Views: 818

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 2, 2014 at 12:18pm

आपके दिए गए सुझाव पर कितना अमल हो पाया, निम्न संशोधन का वलोकन कर बातावे आदनिया डॉ प्राची जी -


राज सफल क्या आप का, पूछ रहे है लोग
नेताजी क्या आप ने,किया उचित उपयोग ?
किया उचित उपयोग,लगा क्या जन को ऐसा
जनता करती आस, दिया क्या शासन वैसा.
बनती तब पहिचान, करे जन के काज सकल
जन का हो कल्याण,तभी समझो राज सफल |

क्या अब छंद रचना उपरोक्तानुसार संशोधन हेतुं ठीक है | सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 1, 2014 at 2:28pm

आ० लक्ष्मण जी गुरु जी अगर नाराज हो गए तो अपनी फीस के साथ गुरुदक्षिणा भी लेना शुरू कर देंगे ,आप उनकी बातों पर गौर करें ....:-)))))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 1, 2014 at 12:38pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लादिवाला जी 

आप विधाओं को इतनी सरसरी नज़र से क्यों देख जाते हैं... मेरी समझ से बाहर है 

आपके द्वारा सुधारी गयी कुण्डलिया के दोहा अंश को देख जाइए 

..

आप का राज आप पर, पूछ रहे है लोग ....................चित्र से काव्य छंदोत्सव अंक ३४ की भूमिका को आपने पढ़ा होता तो ये गलती शायद आपसे नहीं होती... खैर वहाँ भूमिका में शब्द समुच्चय , आतंरिक व्यस्था और कलों पर चर्चा है आप उसे ध्यान से पढ़ें ...कोइ संशय हो तो बेझिझक पूछें भी .

नेताजी क्या आप ने,किया उचित उपयोग ?  

अब रोला अंश को देख जाइए 

रोला का अंत आम का (२१२) या आपका (२१२) शब्द से कैसे हो सकता है जबकि रोला छंद के सम चरण का अंत ११२ या २२ या ११११ से किये जाने का विधान है..

आप दिए गए सुझावों को कृपया ध्यान से समझें और तदनुरूप प्रयास करें 

सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 1, 2014 at 12:28pm

डॉ प्राची जी ने हमेशा की तरह प्रथम कुंडलियाँ छंद में त्रुटियों  की ओर ध्यान दिलाया है | मैंने प्रयास कर संशोधन किया है |

कराया एक बार पुनः अवलोकन करे | छंद के भाव सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी | 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 1, 2014 at 12:23pm

हार्दिक आभार आपका श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी और आदरणीया मीना पाठक जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 30, 2014 at 5:28pm

आदरणीय कुंडलियों के भाव बहुत बढ़िया हैं कहीं कही जल्दी बाजी हो गई डॉ प्राची जी की बात पर अवश्य गौर करें बहरहाल बधाई आपको 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2014 at 11:53am

आदरणीय लक्ष्मण सर दोनों ही कुण्डलिया राजनीति और समाज को दर्शा रही हैं इस हेतु बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 30, 2014 at 11:35am

राज आप का आप पर, पूछ रहे है लोग 

नेताजी क्या आप के, कर रहे सदुपयोग ? .......................सम चरण की आतंरिक शब्द व्यवस्था पुनः देखिये आदरणीय 

कर रहे सदुपयोग, लगा क्या जन को ऐसा

जनता करती आस, दिया क्या शासन वैसा.

जनता को सब भान,दिखाते त्याग का साज

जनता करे प्रयोग, समझे सत्ता का राज |...................कुण्डलिया छंद का अंत २१ से ?  एक बार पुनः विधान पर अवश्य ही गौर कर लीजिये आदरणीय...(२११ /११११/२२ /११२ से अंत होना चाहिए रोला छंद का)

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 30, 2014 at 9:47am

हार्दिक आभार श्री बृजेश नीरज जी और श्री (डॉ)आशुतोष मिश्र जी | सादर 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 29, 2014 at 5:04pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई, 

समाज और राजनीति दोनों पर सुंदर कुंडलियाँ  की हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service