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बाल श्रमिक

बाल श्रमिक
वह जा रहा है बाल श्रमिक
अधनंगे बदन पर लू के थपेड़े सहते
तपती,सुलगती दुपहरी मैं,सर पर उठाये
ईंटों से भरी तगारी
सिर्फ तगारी का बोझ नहीं
मृत आकांक्षाओं की अर्थी
सर पर उठाये
नन्हे श्रमिक के बोझिल कदम डगमगाए
तन मन की व्यथा किसे सुनाये
याद आ रहा है उसे
मां जब मजदूरी पर जाती और रखती
अपने सर पर ईंटों से भरी तगारी
साथ ही रख देती दो ईंटें उसके सर पर भी
जिन हालात मैं खुद जे रही थी
ढाल दिया उसी मैं बालक को भी
माँ के पथ का बालक
नित करता अनुकरण
लीक पर चलते चलते,
खो गया कहीं मासूम बचपन
शिखा की डगर पे चलने का अवसर
मिला ही नहीं कभी
उसे तो विरासत मैं मिली
अशिक्षा की यही कटीली राह

काश वह रोज़ी रोटी की फिक्र के
दायरे से निकल पाए
थोडा वक़्त खुद के लिए बचाए
जिसमे पड़ लिख कर
संवार ले वोह बाकी की उम्र
बचपन के मरने का जी दुःख उसने झेला
आने वाले वक़्त में,वह कहानी
उसकी संतान न दोहराए
पड़ने की उम्र में ,श्रमिक न बने
कंधे पर बस्ता उठाये
शान से पाठशाला जाए

रजनी छाबरा

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 8, 2010 at 12:03pm
Rajni ji, kash ki aisa ho paye to is desh ka bachpan Baal shrmik na bankar desh ka gaurav ban jaye.
Comment by Rash Bihari Ravi on June 3, 2010 at 2:57pm
आने वाले वक़्त में,वह कहानी
उसकी संतान न दोहराए
पड़ने की उम्र में ,श्रमिक न बने
कंधे पर बस्ता उठाये
शान से पाठशाला जाए
bahut badhia
Comment by Kanchan Pandey on June 1, 2010 at 2:00pm
Rajni didi, baal shram desh key bhavishya key saath khilwaad hai, aur bachpan ko chhinaney ki saajish, sarkaar ko kathor karyawaahi karni chaahiyey,bahut badhiya kavita hai,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 1, 2010 at 1:52pm
काश वह रोज़ी रोटी की फिक्र के
दायरे से निकल पाए
थोडा वक़्त खुद के लिए बचाए
जिसमे पड़ लिख कर
संवार ले वोह बाकी की उम्र
bahut hi maarmik rachna hai rajani didi.....ab aur kuch nahi kaha jaa sakta hai ispar.....
dhanyabaad yahan post karne ke liye
Comment by Admin on June 1, 2010 at 12:38pm
बहुत ही संवेदनशील बिषय पर आपने ये रचना पोस्ट किया है रजनी बहन, वास्तव मे बल श्रम सभ्य समाज पर एक कोढ़ है, जिसे हम सब सुबह शाम चाय , किराना , पंचर बनाने वाले दुकानों , होटलों ढ़ाबो तथा ईट भठो आदि पर देख सकते है,
Comment by Anand Vats on June 1, 2010 at 12:00pm
पड़ने की उम्र में ,श्रमिक न बने
कंधे पर बस्ता उठाये
शान से पाठशाला जाए

मान गए क्या लिखा है आपने ज़बरदस्त ...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 1, 2010 at 8:51am
काश वह रोज़ी रोटी की फिक्र के
दायरे से निकल पाए
थोडा वक़्त खुद के लिए बचाए
जिसमे पढ़ लिख कर
संवार ले वोह बाकी की उम्र
बचपन के मरने का जो दुःख उसने झेला
आने वाले वक़्त में,वह कहानी
उसकी संतान न दोहराए
पढ़ने की उम्र में ,श्रमिक न बने
कंधे पर बस्ता उठाये
शान से पाठशाला जाए
रजनी दीदी,बाल श्रम वास्तव मे बहुत बड़ी समस्या है इस देश के लिये, और कही ना कही इस समस्या के लिये उन ग़रीब माँ बाप के अलावा पढ़े लिखे सभ्य समाज भी ज़िम्मेदार है, अक्सर हमे देखने को मिल जायेगा क़ि
बड़े बड़े ओहदे पर बैठे अफ़सरो के घरो मे भी बच्चो से काम कराया जाता है,

सामाजिक बुराई पर चोट करती हुई एक बहुत ही उम्द्दा और ससक्त रचना है यह, इस कविता के लिये बहुत बहुत धन्यबाद है रजनी दीदी,

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