For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बाल श्रमिक
वह जा रहा है बाल श्रमिक
अधनंगे बदन पर लू के थपेड़े सहते
तपती,सुलगती दुपहरी मैं,सर पर उठाये
ईंटों से भरी तगारी
सिर्फ तगारी का बोझ नहीं
मृत आकांक्षाओं की अर्थी
सर पर उठाये
नन्हे श्रमिक के बोझिल कदम डगमगाए
तन मन की व्यथा किसे सुनाये
याद आ रहा है उसे
मां जब मजदूरी पर जाती और रखती
अपने सर पर ईंटों से भरी तगारी
साथ ही रख देती दो ईंटें उसके सर पर भी
जिन हालात मैं खुद जे रही थी
ढाल दिया उसी मैं बालक को भी
माँ के पथ का बालक
नित करता अनुकरण
लीक पर चलते चलते,
खो गया कहीं मासूम बचपन
शिखा की डगर पे चलने का अवसर
मिला ही नहीं कभी
उसे तो विरासत मैं मिली
अशिक्षा की यही कटीली राह

काश वह रोज़ी रोटी की फिक्र के
दायरे से निकल पाए
थोडा वक़्त खुद के लिए बचाए
जिसमे पड़ लिख कर
संवार ले वोह बाकी की उम्र
बचपन के मरने का जी दुःख उसने झेला
आने वाले वक़्त में,वह कहानी
उसकी संतान न दोहराए
पड़ने की उम्र में ,श्रमिक न बने
कंधे पर बस्ता उठाये
शान से पाठशाला जाए

रजनी छाबरा

Views: 435

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 8, 2010 at 12:03pm
Rajni ji, kash ki aisa ho paye to is desh ka bachpan Baal shrmik na bankar desh ka gaurav ban jaye.
Comment by Rash Bihari Ravi on June 3, 2010 at 2:57pm
आने वाले वक़्त में,वह कहानी
उसकी संतान न दोहराए
पड़ने की उम्र में ,श्रमिक न बने
कंधे पर बस्ता उठाये
शान से पाठशाला जाए
bahut badhia
Comment by Kanchan Pandey on June 1, 2010 at 2:00pm
Rajni didi, baal shram desh key bhavishya key saath khilwaad hai, aur bachpan ko chhinaney ki saajish, sarkaar ko kathor karyawaahi karni chaahiyey,bahut badhiya kavita hai,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 1, 2010 at 1:52pm
काश वह रोज़ी रोटी की फिक्र के
दायरे से निकल पाए
थोडा वक़्त खुद के लिए बचाए
जिसमे पड़ लिख कर
संवार ले वोह बाकी की उम्र
bahut hi maarmik rachna hai rajani didi.....ab aur kuch nahi kaha jaa sakta hai ispar.....
dhanyabaad yahan post karne ke liye
Comment by Admin on June 1, 2010 at 12:38pm
बहुत ही संवेदनशील बिषय पर आपने ये रचना पोस्ट किया है रजनी बहन, वास्तव मे बल श्रम सभ्य समाज पर एक कोढ़ है, जिसे हम सब सुबह शाम चाय , किराना , पंचर बनाने वाले दुकानों , होटलों ढ़ाबो तथा ईट भठो आदि पर देख सकते है,
Comment by Anand Vats on June 1, 2010 at 12:00pm
पड़ने की उम्र में ,श्रमिक न बने
कंधे पर बस्ता उठाये
शान से पाठशाला जाए

मान गए क्या लिखा है आपने ज़बरदस्त ...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 1, 2010 at 8:51am
काश वह रोज़ी रोटी की फिक्र के
दायरे से निकल पाए
थोडा वक़्त खुद के लिए बचाए
जिसमे पढ़ लिख कर
संवार ले वोह बाकी की उम्र
बचपन के मरने का जो दुःख उसने झेला
आने वाले वक़्त में,वह कहानी
उसकी संतान न दोहराए
पढ़ने की उम्र में ,श्रमिक न बने
कंधे पर बस्ता उठाये
शान से पाठशाला जाए
रजनी दीदी,बाल श्रम वास्तव मे बहुत बड़ी समस्या है इस देश के लिये, और कही ना कही इस समस्या के लिये उन ग़रीब माँ बाप के अलावा पढ़े लिखे सभ्य समाज भी ज़िम्मेदार है, अक्सर हमे देखने को मिल जायेगा क़ि
बड़े बड़े ओहदे पर बैठे अफ़सरो के घरो मे भी बच्चो से काम कराया जाता है,

सामाजिक बुराई पर चोट करती हुई एक बहुत ही उम्द्दा और ससक्त रचना है यह, इस कविता के लिये बहुत बहुत धन्यबाद है रजनी दीदी,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service