For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सभी सम्माननीय पाठकवृंदों को नववर्ष कि शुभकामनाओं सहित

**************************************************************

1222 / 1221 / 1212 / 1222

*******************************


सुबह उसकी  महक लेकर , हवा मेला सजाती  है,
उदासी जुल्फ से उसकी  , चुरा के  शाम  लाती  है

वो जब  काँपती अंगुली , मेरी लट  में फिराती  है
यादे  बूढ़ी  माई की , वो फिर से  मन जगाती  है

पहुचता हूँ जो उस तक मैं , गुजरती साँझ बेला को
वो दिन भर की कथा मुझको, बिठा हद में सुनाती है

थका होता हूँ जिस दिन मैं, झिड़क देता उसे झट से
वो नादाँ तो झिड़क के भी , चकहती  कुलबुलाती है

समझ लेना ‘मुसाफिर’ मत , ये कहीं और संदर्भित
ये  मासूम   सनम   मेरा , मेरी  बच्ची  कहाती  है

**

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

**

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 449

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 9, 2014 at 8:41am

भाई अरुण जी आपका मसविरा सर आखों पर , अभी तो गजल कि दुनिया में जन्म भर लिया है . आप लोगों कि अंगुली पकड़ कर ही चलना आएगा . हार्दिक धन्यवाद .

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 3, 2014 at 5:16pm

भाई जी भावपक्ष तो दिल खुश कर गया लेकिन बह्र में गड़बड़ है उदाहरण के लिए देखिये.

1  2  2   2   1 2   2  2    1 2 1 2  1 2  2  2

सुबह उसकी  महक लेकर , हवा मेला सजाती  है,

1 2 2  2  1  2   2 1      1 2 1  2  1   2  2  2
उदासी जुल्फ से उसकी  , चुरा के  शाम  लाती  है . दोनों में फर्क है यदि लेकर को लेके करेंगे तो सही हो जाएगी. दूसरा देखिये

1   2    2  1 यहीं बडबडी हो गई १२२२ की जगह १२२१ है भाई जी.

वो जब  काँपती अंगुली , मेरी लट  में फिराती  है..

सतत प्रयासरत रहें अब मंजिल दूर नहीं.

Comment by Neeraj Nishchal on January 3, 2014 at 5:05pm

पहली बात आपकी ग़ज़ल तो बहुत ही और बहुत ही सुन्दर है
और उस पर ये पंक्ति

ये मासूम सनम मेरा , मेरी बच्ची कहाती है
क्या कहूं बहुत ही उम्दा

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 3, 2014 at 10:05am

वो जब  काँपती अंगुली , मेरी लट  में फिराती  है
यादे  बूढ़ी  माई की , वो फिर से  मन जगाती  है....यह शेर हृदयस्पर्शी हुआ

अति सुंदर गजल, बधाई स्वीकारें आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by MAHIMA SHREE on January 2, 2014 at 9:11pm

 

वो जब  काँपती अंगुली , मेरी लट  में फिराती  है
यादे  बूढ़ी  माई की , वो फिर से  मन जगाती  है...

 

थका होता हूँ जिस दिन मैं, झिड़क देता उसे झट से
वो नादाँ तो झिड़क के भी , चकहती  कुलबुलाती है

 बेहद प्यारी गज़ल आदरणीय धामी जी .. बहुत हार्दिक बधाईयाँ और शुभकामनायें आपकी बिटिया के लिए /सादर

 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 2, 2014 at 9:10pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है भाई , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया लक्ष्मण भाई।"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये अमित जिनकी टिप्पणी से सीखने को मिला…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service