For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आँसू के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या

इन आँखो में , पलते सपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
दुनिया सबकी ,फिर अपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या

खुशी , प्यार , अपनापन , और सुक़ून की चाह बराबर
अपनो से तक़रार और फिर मनुहार भरी इक आह बराबर
हंसता है जब - जब तू , जिन जिन बातों पे हंसता हूँ मैं भी
तूँ रोए जबभी , तो मैं भी रो दूँ ,
आँसू  के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या

तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को
मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले कोई समर को
काटता है रातें सियाह तू , तो धूप में तपता हूँ मैं भी
तू बोए धरती , तो मैं भी सींचू ,
प्रश्नों के हल , तेरे-मेरे , अलग अलग है क्या

इस दुनिया के हमने तुमने , कितने ही टुकड़े कर डाले
अब क्या रोने से होता जब , ज़ख़्म बने इस तन के छाले
जानता है तू , ग़लतियाँ इक तरफ़ा ना थी , मानता हूँ मैं भी
तू खोजे मुस्तकबिल , तो मैं भी चलूं ,
माझी के गम तेरे- मेरे , अलग अलग हैं क्या

प्रस्तुति , मौलिक व अप्रकाशित
द्वारा अजय कुमार शर्मा

Views: 591

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vandana on January 3, 2014 at 6:21am

बहुत सुन्दर भाव आदरणीय अजय जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 2, 2014 at 2:25pm

बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय अजय शर्मा जी अंतिम बंद बहुत भाया इस सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 2, 2014 at 7:32am

आदरणीय अजय जी,

नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ इस सुंदर रचना  की भी हार्दिक बधाई.

इस दुनिया के हमने तुमने , कितने ही टुकड़े कर डाले
अब क्या रोने से होता जब , ज़ख़्म बने इस तन के छाले

बहुत खूब 

Comment by ajay sharma on January 1, 2014 at 10:33pm

giriraj ji abhi romanized hindi  se devnagiri hindi me typing ka zyada anubhav nahi ho paya hoo....

please ise ......maji hi pada jaye .................aage koshish karoonga ki typing shuddh hi ho 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 1, 2014 at 10:04pm

इस दुनिया के हमने तुमने , कितने ही टुकड़े कर डाले
अब क्या रोने से होता जब , ज़ख़्म बने इस तन के छाले
जानता है तू , ग़लतियाँ इक तरफ़ा ना थी , मानता हूँ मैं भी
तू खोजे मुस्तकबिल , तो मैं भी चलूं ,
माझी के गम तेरे- मेरे , अलग अलग हैं क्या..............

बहुत उत्कृष्ट रचना,सुंदर भाव बधाई स्वीकारें आदरणीय अजय जी

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 1, 2014 at 7:10pm

अजय भाई नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ आपको इस सुंदर रचना  की भी हार्दिक बधाई॥

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 1, 2014 at 6:33pm
भाई अजय जी! एक उत्कृष्ट रचना।
बहुत ही गुह्यतम कथन का उद्घाटन। रचना हेतु बधाई।
नववर्ष की अनेकश: शुभकामनाएं।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 1, 2014 at 11:47am

आदरणीय अजय भाई , बहुत खूब सूरत रचना की है , आपको बधाई ॥

इस दुनिया के हमने तुमने , कितने ही टुकड़े कर डाले
अब क्या रोने से होता जब , ज़ख़्म बने इस तन के छाले
जानता है तू , ग़लतियाँ इक तरफ़ा ना थी , मानता हूँ मैं भी
तू खोजे मुस्तकबिल , तो मैं भी चलूं ,
माझी के गम तेरे- मेरे , अलग अलग हैं क्या --- वाह भाई वाह ॥  आदरणीय शायद आप माजी ( अतीत ) कहना चाहते हों , माझी टाइप हो गया है ॥

Comment by ajay sharma on December 31, 2013 at 10:22pm

aap dono sisters ko is nacheez bhai ki ..........naye saal par khoob khoob mubaraqbaad ......................

dhanya huya ........asli comments to yahi hai .......bahut kuch soch kar likha tha ....par .........nevertheless.....thanks to you both 

Comment by coontee mukerji on December 31, 2013 at 9:50pm

तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को
मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले कोई समर को
काटता है रातें सियाह तू , तो धूप में तपता हूँ मैं भी
तू बोए धरती , तो मैं भी सींचू ,
प्रश्नों के हल , तेरे-मेरे , अलग अलग है क्या......बहुत ही अनूठी रचना. बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, अभिवादन।  गजल का प्रयास हुआ है सुधार के बाद यह बेहतर हो जायेगी।हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियाँ क़ाबिले ग़ौर…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ ,बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियाँ क़ाबिले…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए और बेहतर सुझाव के लिए सुधार करती हूँ सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन जी बहुत शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका मक़्त के में सुधार की कोशिश करती हूं सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी बेहतर इस्लाह ऑयर हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आपका सुधार करती हूँ सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी और अमीर जी के सुझाव क़ाबिले…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बहुत ही लाज़वाब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिये है शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ ,गिरह भी…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी आदाब, और प्रस्तुति तक पहुँचने के लिए आपका आपका आभारी हूँ। "बेवफ़ा है वो तो…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय मुसाफिर जी नमस्कार । भावपूर्ण ग़ज़ल हेतु बधाई। इस्लाह भी गुणीजनों की ख़ूब हुई है। "
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा यादव जी नमस्कार । ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service