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ग़ज़ल : इश्क जबसे वो करने लगे

बह्र : २१२ २१२ २१२

------------

इश्क जबसे वो करने लगे

रोज़ घंटों सँवरने लगे

 

गाल पे लाल बत्ती हुई

और लम्हे ठहरने लगे

 

दिल की सड़कों पे बारिश हुई

जख़्म फिर से उभरने लगे

 

प्यार आखिर हमें भी हुआ

और हम भी सुधरने लगे

 

इश्क रब है ये जाना तो हम

प्यार हर शै से करने लगे

 

कर्म अच्छे किये हैं तो क्यूँ

भूत से आप डरने लगे

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 7, 2014 at 9:54pm

आदरणीय सौरभ जी, सच ही कहा है कि अनुभव का कोई सानी नहीं होता। केवल एक शब्द बदलने से शे’र की शेरियत बढ़ गई। तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ इस सुझाव के लिए। स्नेह हूँ ही लगातार बारंबार बना रहे।  

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 7, 2014 at 9:44pm

Shyam Narain Verma जी, अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, coontee mukerji जी, MAHIMA SHREE जी, Sonam Saini जी,  गिरिराज भंडारी जी,  vijay nikore जी,  Dr.Prachi Singh जी, रमेश कुमार चौहान जी एवं Dr Ashutosh Mishra जी। शे’र पसंद करने और हौसला अफ़जाई करने के लिए आप सबका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हुँ। स्नेह यूँ ही बना रहे।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 6, 2014 at 5:04pm

इश्क जबसे वो करने लगे

रोज़ घंटों सँवरने लगे.....

कर्म अच्छे किये हैं तो क्यूँ

भूत से आप डरने लगे...आदरणीय धर्मेन्द्र जी ..बेहद सादगी से मस्ताने अंदाज में नाना बातें करती हुई शानदार ग़ज़ल ...और इस ग़ज़ल के मुझे बेहद पसंद आये ये शेर ..इनके लिए बिशेष रूप से बधाई ..सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 2:45pm

आदरणीय धर्मेन्द्रजी, अच्छी मुलायम लेकिन बहुत कुछ साझा करती हुई इस ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें. 

’..लाल बत्ती हुई’ अपनी सहजता के कारण ध्यान खींचती है. वो जल भी सकती थी, ताकि लम्हों के ठहर जाने का मंज़र और अधिक साफ़ हो जाता .. :-))

बहुत गहरे हैं.... . . अश’आर.. ;-)))

Comment by रमेश कुमार चौहान on January 1, 2014 at 8:33pm

इस सुंदर प्रस्तुति पर बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 1, 2014 at 5:23pm

इश्क जबसे वो करने लगे

रोज़ घंटों सँवरने लगे...................बहुत शानदार मतला कहा है 

इश्क रब है ये जाना तो हम

प्यार हर शै से करने लगे...................वाह! बहुत सुन्दर शेर 

हार्दिक बधाई आ० धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी 

 

Comment by vijay nikore on January 1, 2014 at 10:22am

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2013 at 8:24pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , छोटी बह्र मे लाजवाब गज़ल कही है !! वाह भाई जी बहुत सारी बधाइयाँ ॥

कर्म अच्छे किये हैं तो क्यूँ

भूत से आप डरने लगे -------- खास शे र के लिये खास बधाई कुबूल हो ॥

Comment by Sonam Saini on December 30, 2013 at 12:39pm

बहुत खूब आदरणीय सर

Comment by MAHIMA SHREE on December 29, 2013 at 8:11pm

दिल की सड़कों पे बारिश हुई

जख़्म फिर से उभरने लगे

 

इश्क रब है ये जाना तो हम

प्यार हर शै से करने लगे ..बहुत खूब ... बधाई आ. धर्मेन्द्र जी ..सादर

 

 

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